मंगलवार, 27 जुलाई 2010

१५ शाबान इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की विलादत






1५ शाबान सन २५५ हिजरी की सुबह सुबह सूरज के आकाश में उगने के साथ साथ खातेमुल ओसिया और खातिमुल ओलिया मुम्किनातकी आखिरी हद ज़मीनऔर असमान के बीचका वास्ता हजरत बकियातुल्लाह इमामे असरे वज्ज्मन अपने वजूदे पुर नूर से ज़मीनों असमान को मुनव्वर फरमाने के लिए अर्शे आलाकी बलंदियों से फर्श पर तशरीफ़ लाये ताकेफर्श को अर्श का रुतबा दे सकें और उनके आगमन से ज़मीन पर असमान के फरिश्तों का आवागमन प्रारम्भ हुआ जो अब तक जारी है और उनके जुहूर तक और ता क़यामे क़यामत जारी रहेगा ओर इस तरह खुदा वन्देआलम ने जो वादाकिया था समाज के दबे कुचले ओर उन लोगों से के जिन्हें ज़ुल्म ने कुचल दिया ओर कमज़ोर बन दिया था के ""हम ये इरादा रखते है अपने उन बन्दों पर के जिन्हें दबा दिया गया है कमज़ोर बना दिया गया है ये अहसान करें के उन्हें इमाम बनाये ओर उन्हें इस दुनिया का वारिस बनाएं": सूरएक़सस आयात -५



१५ शाबान की फ़ज़ीलत ---



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जब इमामे मासूम दुनिया में आता है या यूँ कहा जाये के एक इंसाने कामिल गेय्ब के खजाने से दुनिया के सामने ज़ाहिर होता है तो वो बिलकुल ऐसे ही है जैस्रे कुरान करीम गेय्ब के खजाने से ज़मीन पर नाजिल होता है .ओर चुनके रसूल अल्लाह के वंशज ओर कुरान दोनो हमेशा हमेशा के साथी हैं ओर एक दुसरे के बराबर है इस तरह के इन दोनों में कोई किसी भी प्रकार का अंतर नहीं है तो हर का हुकम ऐसा ही है जैसेके दुसरे का हुक्म है .इसी लिए अगर कुरान का नाजिल होना शबे कद्र को बा बरकत बनता है तो तख्लिके खुदा की आखिरी हद और इसका खुलासा, की विलादत १५ शाबान की शब् को बा बरकत बना देती है .क्युनके यही एक दोसरे से अलग न होना ही कारक बनता है इस बात के लिए के शबे कद्र और १५ शाबान की शब् कद्र मंज़िलत में बराबर हो क्यूँ की कुरान ओर रसूल के खानदानवाले बराबर है इसलिए इन से निस्बत रखने वाली राते भी बराबर होगी ,जिस तरह शबे कद्र अल्लाह के महीने रमजान की सब रातो से अफज़ल है इसी तरह शबे १५ शाबान भी रसूल अल्लाह के महीने शाबान की सब रातों से अफज़ल होगी ,अतः जिस तरह शबे कद्र के लिए आया है के इस रात में अल्लाह किसी भी बन्दे की कोई दुआ रद्द नहीं करता मगर ये के वो शख्स अपने माँ बाप का नाफरमान हो या शराब पिने वाला हो या मोमिन के लिए अपने दिल में बुग्ज़ ओर कीना रखता हो .इसी तरह रसूल अल्लाह ओर इमामे सादिक अलैहिस्सलाम से रिवायत मिलती है के खुदा वन्दे आलम शबे १५ शाबान में बनी कल्ब के कबीले की बकरियों के बालों के बराबर अपने बन्दों के गुनाहों को बख्श देता है .जब पांचवें इमाम हज़रात मुहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम से इस रात की फ़ज़ीलत के बारे में सवाल किया गया तो इमाम ने फ़रमाया सबसे ज्यादा फ़ज़ीलत की रत शबे कद्र के बाद १५ शाबान की शब् है इसलिए के अल्लाह ताला इस रात में अपने करम को बन्दे पर निछावर कर देता है .ओर अपने रहम से उसके गुनाहों को माफ़ कर देता है इसलिए अल्लाह ताला के नजदीक होने की कोशिश करो इस रात में इसलिए के खुदा ने क़सम खाई है के इस रात में किसी भी दुआ करने वाले की दुआ को अधूरी न रहने दे लेकिन अगर वो गुनाह करने के लिए दुआ करे या किसी के बुरे के लिए दुआ करे तो खुदा कभी कुबूल नहीं करता ,इसके बाद इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया के ये रात वो है के जिसे खुदा ने हम अहलेबैत के लिए चुना है जिस तरह शबे कद्र को रसूल अल्लाह के लिए चुना था ।



रसूल अल्ल्लाह ने इसी रात में आयशा से कहा था के किया तुम्हे पता है आज की रात कौनसी रात है ? आज की रात १५ शाबान की रात है आज की रात में अल्लाह अपने बन्दों की ज़िन्दगी ओर मौत लिखता है ओर अपने बन्दों का रिजक निर्धारित करता है इस रात खुदा अपने फरिश्तों को पहले इस दुनिया के आकाश पर भेजता है और फिर ज़मीन पर भेजता है ताके वो खुदा के बन्दों को खुश खबरी दे सकें के आज अल्लाह तुम सबकी दुआओं को कुबूल कर लेगा।



आज की शब् हम सब को जश्न मानना चाहिए क्यूँ की आज इस दुनिया के आखिरी वारिस ,ग़रीबों ओर कमजोरो के मसीहा ,दीन को ज़िन्दगी देने वाले ओर मोमिनों के दिल की ठंडक दुनिया को इंसाफ ओर शांति से भर देने वाले की विलादत की रात है.आज की रात में गुसल करना नए कपडे पेहेनना ख़ुशी मनाने का बड़ा सवाब ओर पुण्य है आज की रात में दुआए कुमैल पढने ओर इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम की जियारत की ताकीद की गयी है ओर आज की रात में हमें अपने इमामें ज़माना को अरिज़ा <पत्र > लिखना चाहिए ओर उनसे जुहूर के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ओर उस अरिज़े को दरया ,नेहर या कुंवे मेंडाल देना चाहिए ।



ओर खुदा से दुआ करनी चाहिए के परवर दीगार हमारे मोला ओरहमारे इमाम के जुहूर में जल्दी farma ओर हमें उनके असहाब ओर अंसार में शामिल कर आमीन .



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