मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

किशोरों में आत्म विश्वास उत्पन्न करना




किशोरावस्था की समस्याओं और किशोरों में आत्म विश्वास उत्पन्न करना


हम सब जानते हैं कि एक किशोर की भावनाओं, अनुभूतियों, इच्छाओं, आकांक्षाओं यहॉ तक कि उसके शरीर में जो परिवर्तन उत्पन्न होते हैं उनकी पहचान प्राप्त करना किशोर के साथ उसके आस - पास के लोगों विशेषकर बड़ों और माता - पिता के बीच एक तार्किक संबंध उत्पन्न करने की कुन्जी है। यहॉ पर हम कुछ ऐसे बिन्दुओं की ओर संकेत करेंगे जिनपर ध्यान देकर किशोर तथा माता - पिता एक दूसरे के साथ अधिक निकटता का आभास करें।










मनुष्य अपनी पूरी आयु में प्रशिक्षण प्राप्त करता रहता है, दूसरे शष्दों में मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रशिक्षण की प्रक्रिया से गुज़रता रहता है जो उसके आस - पास के लोग एवं वातावरण उसे सिखाता है। अलबत्ता जीवन के आरम्भिक दिनों से लेकर युवावस्था तक प्रशिक्षण का विशेष महत्व होता है। इसलिए अच्छा है कि इसी आयु में हम अपने बच्चों को यह सिखाएं कि मनुष्य को अपने जीवन में कुछ चीज़ों पर विश्वास होना चाहिए और उनके प्रति उसे कटिबद्ध रहना चाहिए।


शिष्टाचारिक नियमों, सामाजिक रीति - रिवाजों और मनुष्य के विश्वासों को धर्म कहा जाता है। धर्म कारण बनता है कि मनुष्य भ्रष्टचार से बचे और जीवन में उसे कल्याण प्राप्त हो। यदि इसके विपरित हो तो मनुष्य एक ऐसे जीव में परिवर्तित हो जाए गा जिसे बुराइयों से कोई रोक नहीं सकता।


नि: सन्देह युवाओं में सही शिष्टाचारिक नियमों विशेषकर धार्मिक नियमों के प्रति कटिबद्धता की भावना उत्पन्न करके उसे बहुत सारी कठिनाइयों तथा युवावस्था की समस्याओं से बचाया जा सकता है। इससे माता - पिता के साथ उनकी सन्तान के संबंधों को बेहतर बनाने में भी सहायता मिलती है।


माता - पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए पवित्रता तथा नैतिकता का उदाहरण बने ताकि बच्चे उनसे इसे सीख सकें।










घर को एक शान्त एवं सुरक्षित स्थान में परिवर्तित करें ताकि युवा अपनी समस्याओं के समाधान के लिए घर ही की शरण में आएं।यदि हम युवा के साथ एक स्वस्थ और तार्किक संबंध स्थापित कर सकें तो हम उसके वैचारिक संसार में क़दम रख सकते हैं और यह उसके सफल प्रशिक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम है।


मनोविज्ञान ने यह प्रभाणित कर दिया है कि जिस प्रकार बच्चे को माता के प्रेम व स्नेह की आव्श्यकता है उसी प्रकार उसे पिता के प्रेम की भी आवश्यकता होती है।










दूसरों के सम्मुख युवाओं का अपमान कदापि नहीं करना चाहिए। आप युवा को यह समझाएं कि उसके कोर्यों की ज़िम्मेदारी केवल उसी पर है और आप आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता कर सकते हैं।


युवाओं के अपने कुछ विशेष विचार होते हैं, उनके कोमल एवं सवेंदनशील संसार को कदापि तुच्छ न समझें हमें प्रयास करना चाहिए कि युवा की रुचि के अनुकूल उसके लिए उचित साधन जुटाएं ताकि उसे वैचारिक पथभ्रष्टता से बचा सकें। मित्र तथा युवा की आयु के उसके साथी, उसके व्यक्तित्व निर्भाण में बहुत प्रभावी भूमिका निमाते हैं। इसलिए हमें सर्तक रहना चाहिए कि उसके घनिष्ट मित्र कौन हैं, उनकी क्या विशेषताएं हैं और उनके परिवार पर किस विशेष संस्कृति का प्रभाव है। क्योंकि युवा अपने मित्रों का अनुसरण बड़ी जल्दी करने लगता है और यदि उसके मित्र विश्वसनीय और उचित न हों तो क्या हो सकता है यह आप स्वंम सोचें।










हमें अपनी युवा सन्तानों का मित्र और साथी होना चाहिए। बजाए इसके कि उसके मुक़ाबले में खड़े हो जाएं या उसपर नियन्त्रण रखने के लिए निरन्तर उसका पीछा करते रहें या अकारण ही उसकी आलोचना करें जिससे केवल युवा की प्रतिक्रियाएं ही सामने आएं गी, हमें चाहिए कि उसके मित्र बनकर रहें।


युवा को ऐसे किसी की खोज होती है जो उसकी बातों को ध्यान से सुने और उसके विशेष संसार को पहचाने।


आइए हम युवा का विश्वास प्राप्त करने का प्रयास करें।


जब कभी विचार विमर्श की बात होती है तो पहली चीज़ जो समझ में आती है वो यह है कि किसी को कोई परेशानी है और वो किसी ऐसे से विचार विमर्श करना चाहता है जो उससे अधिक जानकार हो ताकि उसकी समस्या का समाधान हो सके। मनुष्य की समस्याएं संभव है विभिन्न क्षेत्रों में हों। एक प्रश्न यहॉ पर यह उठता है कि क्या एक सन्तान सलाहकार के पास जा सकती है? या यह कि क्या एक सन्तान हमारी समस्याओं के समाधान में सहायक हो सकती है? हम माता - पिता को कभी कभी ऐसी कठिनाइयों का सामना होता है जिसे अपनी सन्तान के साथ सलाह - मशवरा करके हल किया जा सकता है और इस विचार विमर्श से समस्या के समाधान के अतिरिक्त कई और लाभ हैं।










माता - पिता, प्रशिक्षक या वो सभी, जिन्हें कसी न किसी रूप से बच्चों तथा युवाओं से काम रहता है, कभी न कभी ऐसे स्थान पर पहुंच जाते हैं जहॉ उन्हें निर्णय लेना पड़ता है। स्वाभाविक है कि बड़ें यदि छोटों की सलाह के महत्व व भूमिका से अनभिज्ञ हों तो बड़ी सरलता से वो उनके लिए निर्णय ले सकते हैं।


परन्तु क्या सदैव यह निर्णय बेहतरीन और सबसे उचित निर्णय हैं? यदि ऐसा हो भी तो इससे बच्चे या युवा के आत्म विश्वास तथा व्यक्तित्व विकास को ठेस नहीं पहुंचेगी? अर्थात सन्तान क्या उस स्थान पर नहीं पहुंचे गी जहॉ उसे ऐसा लगने लगे कि जीवन में उसकी कोई भूमिका नहीं है और उसके लिए दूसरे निर्णय लेते हैं।










इसलिए हम माता - पिता और सभी बड़ों से यह आग्रह करते हैं कि अपने बच्चों से सलाह - मशरा करने को गंभीरता से लें और इसे उसके व्यक्तित्व के विकास का महत्वपूर्ण कारक समझें। विचार विमर्श या सलाह, बच्चे की आयु और उसके अनुभवों तथा सूचनाओं की मात्रा के अनुकूल होना चाहिए।


अर्थात जिन विषयों या मामलों का उससे संबंध नहीं है, या अपने विचार व्यक्त करने के लिए उसके पास पर्याप्त ज्ञान नहीं है। उन्हें उसके सामने नहीं रखना चाहिए।










ऐसे नियम जिनपर आप को विश्वास हो और जिनके बारे में आपके विचार परिवर्तित नहीं हो सकते उनपर भी किसी की राय मत लीजिए। अपने बच्चे के दृष्टिकोंण स्वीकार करने के लिए स्वंम को तैयार कीजिए। उसके सम्मुख दो मार्ग रखिए, वो जिसे चाहे कर ले। उदाहरण स्वरूप यह मत पूछिए कि तुम्हारे विचार में इन छुट्टियों में क्या किया जाए? बल्कि ऐसे दो कार्य जो कुद्धियों में किए जा सकते हैं , उसके सामने रखें और उससे कहिए कि किसी एक का चयन कर ले।


सलाह - मशवरे में अपने बच्चे की सहायता कीजिए ताकि वो यह सीखे कि एक ही विषय के विभिन्न आयोमों पर पहले विचार फिर निर्णय लिया जाता है। उसे यह भी समझाइए कि कोई राय पेश करने का अर्थ यह नहीं है कि यही आन्तिम निर्णय है।

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

सम्मोहन एवं बुद्धिमत्ता

पुराने समय की बात है। एक माली रहता था जो सुगंधित व सुदंर फ़ुलवाड़ियों व क्यारियों की बहुत अच्छे ढंग से देखभाल करता था। वृद्ध होने के बावजूद वह प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व बाग़ में टहलता और ताज़ा हवा का आनंद लेता। वह फूल पौधों को देखता और उन्हें सूंघा करता था। इसलिए सदैव प्रफुल्लित रहता था। यही कारण था कि मित्र उसे प्रफुल्लित वृद्ध कहते थे। उसका भी अन्य लोगों की भांति यह विश्वास था कि जो व्यक्ति भोर के समय उठे और कुछ देर फूलों के पास रहे और घास पर चले तो कभी भी बूढ़ा नहीं होगा और सदैव प्रफुल्लित रहेगा। माली ने अपने उपवन में नाना प्रकार के फूल लगा रखे थे और उनमें सबसे अधिक उसे लाल रंग का गुलाब पसंद था जो दिखने में भी सुंदर और सबसे अधिक सुगंधित होता है। वह हर दिन फूल और पौधों को देखता और एक एक फूल को सूंघता और स्वयं से कहताः बुलबुल यदि लाल गुलाब पर सम्मोहित होते हैं तो स्वाभाविक बात है। लाल गुलाब जीवन को आनंद देता है और इससे मन व आत्मा को शांति मिलती है।






एक दिन माली सदैव की भांति सुर्योदय से पूर्व बाग़ में टहलते हुए अपनी पसंद वाले लाल गुलाब तक पहुंचा। उसने देखा कि गुलाब की टहनी पर बैठा एक बुलबुल गुलाब की पंखुड़ियों को एक-एक कर नोच रहा है। बुलबुल अपने सिर को पंखुड़ियों में छिपाकर चहक रहा था। वह इस प्रकार देख रहा था मानो फूल के पास रह कर प्रफुल्लता का आभास कर रहा हो। बुलबुल चहक रहा था और पंखुड़ियों को एक एक कर नोच रहा था यहां तक कि पूरे फूल से उसने पंखुड़ियां नोच डालीं। वृद्ध माली थोड़ी देर खड़ा यह दृष्य देखता रहा। फूलों के निकट बुलबुल को प्रसन्नचित पाकर स्वंय भी प्रफुल्लित था। किन्तु फूल के पास बिखरी पंखुड़ियों के कारण दुखी था। थोड़ी देर के पश्चात बुलबुल ने जब यह समझ लिया कि माली उसे देख रहा था, फुर से उड़ गया।






दूसरे दिन माली ने फिर यही दृष्य देखा। उसने देखा कि बुलबुल पंखुड़ियों को नोच रहा है, चहक रहा है और जैसे ही उसे देखा, देखते ही उड़ गया। माली अपने मनपसंद फूलों की यह दुर्गत देख कर दुखी हुआ और स्वयं से कहने लगा कि बुलबुल को लाल गुलाब पर मोहित होने का अधिकार है किन्तु फूल, देखने और सूंघने के लिए होता है न कि नोचने के लिए। यह न्याय नहीं है। मैंने इन फूलों के लिए बहुत प्रयास किए हैं। बुलबुल इसे क्यों नष्ट कर रहा है?






तीसरे दिन जब माली ने यह देखा कि बुलबुल चहक-चहक कर ज़मीन पर गिरी हुई पंखुड़ियों से बात कर रहा है तो वह क्रोधित हो उठा और कहाः जो बुलबुल अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करे उसका दण्ड पिंजरा है। उसने लाल गुलाब की झाड़ में जाल बिछाकर बुलबुल को पकड़ लिया और पिंजरे में बंद कर दिया और कहाः तुमने अपनी स्वतंत्रता के महत्व को नहीं समझा। अब पिंजरे में रहोगे तो पंखुड़ियों को नोचने का परिणाम समझ में आएगा। बुलबुल ने पिंजरे में बंदी बनाए जाने पर विरोध जताया और कहाः हे प्रिय मित्र हम और तुम दोनों ही लाल गुलाब पर मोहित हैं। तुम फूलों की सिंचाई करके मुझे प्रफुल्लित करते हो और इसके बदले में मेरे चहकने से आनंदित होते हो। मैं भी तुम्हारी भांति स्वतंत्र होना चाहता हूं और बाग़ का चक्कर लगाना चाहता हूं। तुमने किस तर्क के आधार पर मुझे बंदी बनाया है। यदि मेरी चहचहाहट सुनना चाहते हो तो यह जान लो कि तुम्हारा बाग़ मेरे लिए घोसले के समान है मैं उसमें दिन रात चहकूंगा। यदि और किसी कारण से मुझे बंदी बनाया है तो कृपा करके मुझे बताओ।






माली ने उत्तर दियाः जहां तक आवाज़ और चहचहाहट का संबंध है मैं इस संदर्भ में तुमसे सहमत हूं। किन्तु तुमने मेरे प्रिय फूलों को क्षति पहुंचाकर मेरा चैन छीन लिया है। स्वतंत्र अवस्था में तुम चहचहाते समय अपना नियंत्रण खो देते हो, मेरे फूलों को नोच डालते हो। यह दण्ड तुम्हारे ग़लत कार्य के कारण है ताकि दूसरे इससे पाठ लें।


बुलबुल ने कहाः हे निर्दयी व्यक्ति! तुम मुझे बंदी बना कर मेरे मन और आत्मा को आघात पहुंचा रहे हो और दण्ड की बात कर रहे हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारा पाप अधिक है। क्योंकि तूने मेरे मन को आहत किया है जबकि मैंने केवल एक फूल को नोचा है।


बुलबुल की बातों का माली के मन पर प्रभाव पड़ा। वह पक्षी की बातों से इतना प्रसन्न हुआ कि उसे स्वतंत्र कर दिया। बुलबुल उड़ कर लाल गुलाब की टहनी पर बैठ गया और वृद्ध व्यक्ति को संबोधित करके उसने कहाः तुमने मेरे साथ उपकार किया मैं इसका पारितोषिक देना चाहता हूं। जहां तुम खड़े हो वहीं ज़मीन के नीचे सोने के सिक्कों से भरा एक बर्तन गड़ा है। उसे निकाल कर मौज उड़ाओ।






माली ने ज़मीन को खोदा तो सिक्कों से भरा बर्तन देखकर उसने बुलबुल से कहाः मुझे आश्चर्य इस बात पर है कि तूने भूमिगत बर्तन को तो देख लिया किन्तु उस जाल को न देख सके जिसे मैंने बिछाया था।


बुलबुल ने कहा इसका दो कारण हैः बुद्धिमत्ता के बावजूद इस बात की संभावना रहती है कि एक जीव अपने भाग्य के कारण किसी समस्या में घिर जाए। दूसरे यह कि मुझे स्वर्ण से प्रेम नहीं है इसलिए दृष्टि पड़ने के बावजूद इसे महत्व नहीं देता किन्तु चूंकि लाल गुलाब से मुझे प्रेम है और इस प्रेम के कारण मैं उस पर इतना मोहित हो उठा कि मेरी समस्त इंद्रियां लाल गुलाब की ओर केन्द्रित हो गईं और मैं तेरा जाल न देख पाया। जो भी चीज़ अपनी सीमा को नहीं पहचानती उसे कष्ट पहुंचता है यहां तक कि सीमा से अधिक प्रेम का भी यही परिणाम होता है। बुलबुल यह कह कर फुर से उड़ गया ताकि फूलों के सौन्दर्य से आनंदित हो।






कहावत


फ़ारसी भाषा की एक कहावत हैः


تخم مرغ دزد، شتر دزد میشہ


तुख़्मे मुर्ग़ दुज़्द, शुतुर दुज़्द मीशे


मुर्ग़ी का अण्डा चुराने वाला अंततः ऊंट की चोरी करता है,






पुराने समय की बात है कि एक लड़का था जिसे यह नहीं ज्ञात था कि चोरी किसे कहते हैं। उसे तला हुआ अंडा या अंडायुक्त भोजन बहुत पसंद था। एक दिन जब उसे तला अंडा खाने की बहुत अधिक इच्छा हुई तो उसने अपनी मां से कहाः मां अंडा तल कर दीजिए। उसकी मां ने उत्तर दियाः बाद में तल दूंगी। इस समय अंडे समाप्त हो चुके हैं। मुर्ग़ी के पुनः अंडा देने तक प्रतीक्षा करनी होगी। वह बच्चा दो दिन प्रतीक्षा नहीं करना चाह रहा था इसलिए घर से बाहर निकल गया। उसके पड़ोसी ने काबुक में कई मुर्ग़ियां और मुर्ग़े पाल रखे थे। वह बच्चा पड़ोसी के काबुक की ओर गया और उसकी जाली से हाथ डालकर उसने दो तीन अंडे चुरा लिए और घर लौट आया। संयोगवश दोपहर का समय था और मौसम गर्म था उसका पड़ोसी घर के कमरे में आराम कर रहा था इसलिए पड़ोसी के घर का कोई सदस्य उस बच्चे को अंडा चोरी करते नहीं देख पाया। बच्चा प्रसन्न होकर अपने घर लौट गया। घर पहुंच कर उसने अंडे मां को दिए और उसे तलने के लिए अनुरोध किया। मां ने जब अंडे देखे तो पूछा कि ये अंडे कहां से लाए? बच्चे ने हंस कर उत्तर दिया कि पड़ोसी के काबुक से। मां ने बच्चे से यह कहने के बजाए कि यह बुरा कर्म है, यह चोरी है, अंडे ले जाकर वापस करो, कुछ क्षण सोच कर बच्चे से पूछाः किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं? बच्चे ने उत्तर दियाः नहीं।


मां ने प्रेमभाव से कहाः ठीक है अंडे तल दे रही हूं किन्तु यह याद रहे कि तुमने पड़ोसी के काबुक से अंडे उठा कर भला कर्म नहीं किया है। बच्चा यह समझ गया कि पड़ोसियों को उसके कर्म के बारे में ज्ञात नहीं होना चाहिए।


कुछ दिनों के पश्चात फिर अंडे समाप्त हो गए। इस बार यह बच्चा दबे पांव पड़ोसी के काबुक तक पहुंचा और आस पास उसने भलिभांति देख लिया कि कोई देख तो नहीं रहा है। उसने काबुक से कुछ अंडे उठाए और तेज़ी से घर भागा।


जब उसने अंडे मां के हवाले किए तो मां ने कोई विरोध नहीं जताया। केवल यह पूछा कि कहीं पड़ोसी ने तो नहीं देखा? और फिर प्रेमभाव से कहाः बेटा यह अच्छा कर्म नहीं है। कुछ मिनट में अंडा तल कर आ गया। मां और बेटे दोनों ने खाया।


धीरे धीरे बच्चा बड़ा हो रहा था। कभी कभी इधर उधर से कुछ न कुछ चोरी करता रहता। चोरी की गई वस्तुओं को या घर ले आता या फिर अपने मित्रों के बीच बांट कर मज़े उड़ाता। कुछ वर्षों के पश्चात वह छोटा बच्चा युवा हो गया और फिर एक दिन चोरी के अपराध में उसे पकड़ लिया गया। उसने इस बार एक घर से ऊंट की चोरी की थी और ऊंट के स्वामी और आस पास के लोगों ने उसे चोरी करते पकड़ लिया था। उसने सोचा भी नहीं था कि पकड़ा जाएगा। भागने का बहुत प्रयास किया किन्तु जितना भागने का प्रयास करता उतना ही पीटा जाता। अंततः उसे न्यायधीश के पास ले जाया गया।


न्यायधीश ने चोरी सिद्ध हो जाने के पश्चात क़ानून के अनुसार चोर के हाथ काटने का आदेश दिया। जब जल्लाद हाथ काटने पहुंचा तो चोर ने गुहार लगाई कि मुझे मेरी मां से मिलने दिया जाए। न्यायधीश के आदेश पर चोर की मां को बुलाया गया। चोर ने कहाः यदि दंडित करना है तो मेरी मां को दंडित किया जाए क्योंकि मां ने उस समय मुझे नहीं रोका जब मैं छोटी छोटी चोरियां किया करता था। उसने मुझे अंडे चोर से एक माहिर चोर बनाया है।


न्यायधीश चुप रहा। मां ने अपने अपराध को स्वीकार किया। न्यायधीश का मन उस बेचारे चोर के लिए पसीज गया और उसने उसे क्षमा कर दिया तथा चोर की मां को जेल में डालने का आदेश दिया। इस घटना के पश्चात जब भी यह कहना हो कि किसी व्यक्ति की छोटी ग़लतियों की उपेक्षा करने से वह बड़ी ग़लतियां में लिप्त हो सकत है तो यह कहा जाता हैः






تخم مرغ دزد، شتر دزد میشہ


तुख़्मे मुर्ग़ दुज़्द, शुतुर दुज़्द मीशे


मुर्ग़ी का अण्डा चुराने वाला अंततः ऊंट की चोरी करता है,

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

ज्ञान व अध्यात्म का सागर हज़रत मासूमा


                                                              



ज्ञान व अध्यात्म का सागर हज़रत मासूमा


सर्वसमर्थ व महान ईश्वर से निकट होने का एक मार्ग पैग़म्बरे इस्लाम           सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों से प्रेम है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम अपने पवित्र परिजनों का सदैव सम्मान करते थे और लोगों से कहते थे कि वे उनके पवित्र परिजनों से प्रेम करें। पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र क़ुरआन के बाद अपने पवित्र परिजनों का परिचय इस्लामी समुदाय व राष्ट्र के लिए अपनी सबसे बड़ी धरोहर व यादगार के रूप में किया है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों से प्रेम इस बात का कारण बनता है कि इन महान हस्तियों को हम जीवन के समस्त मामलों में अपना आदर्श बनायें।


पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों की शहादत या जन्म दिन इस बात का अवसर है कि हम इन महान हस्तियों के ज्ञान व परिपूर्णता के अथाह सागर से अपनी प्यासी आत्माओं को तृप्त करें। आज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिवार में से एक महान महिला का जन्म दिन है। १७३ हिजरी क़मरी में ज़ीक़ादा महीने की पहली तारीख को महान ईश्वर ने हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को एक पुत्री प्रदान की जिसका नाम फ़ातेमा रखा गया। यह महान महिला विभिन्न उपाधियों से प्रसिद्ध हुईं जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध उपाधि मासूमा है। हज़रत मासूमा हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन है और आज उनका पवित्र मज़ार ईरान के धार्मिक नगर क़ुम में स्थित है जो सदैव पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों से भरा रहता है। प्रिय श्रोताओ इस महान महिला के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं और आज के कार्यक्रम में हम उनके जीवन के कुछ आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं।


उस दिन की विशेषता और महानता बयान नहीं की जा सकती जिस दिन क़ुम वासियों को यह सूचना मिली थी कि एक कारवां उनके नगर में प्रवेश करने वाला है और उस कारवां में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिवार की एक महान महिला हैं। यह महान महिला हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपुत्री और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की महान बहन थीं। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा ने अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से मिलने के लिए २०१ हिजरी क़मरी में मदीना नगर को ईरान के मर्व क्षेत्र के लिए छोड़ा। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा रास्ते की कठिन यात्रा के बाद बहुत बीमार पड़ गयीं। इस प्रकार कि यात्रा को जारी रखना उनके लिए संभव नहीं रह गया तो विवश होकर उन्होंने अपने कारवां का रुख क़ुम नगर की ओर मोड़ दिया। क़ुम वासियों को जब हज़रत मासूमा सलामुल्ला अलैहा के आने का शुभ समाचार मिला तो वे बहुत प्रसन्न हुए। क्योंकि वे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों से अगाध प्रेम करते थे और अपने मध्य पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की एक महान महिला की उपस्थिति को विभूति व गर्व का कारण समझते थे। बूढ़े और जवान सब लोगों ने अपने आपको हज़रत मासूमा के स्वागत के लिए तैयार कर लिया था।


इतिहास में आया है कि क़ुम नगर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति मूसा बिन खज़रज रात को हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के स्वागत के लिए गये और हज़रत मासूमा के ऊंट की नकेल अपने हाथों में पकड़ी और उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया और बहुत आग्रह किया। क़ुम नगर में १७ दिन रहने के बाद अधिक बीमारी के कारण हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा का स्वर्गवास हो गया परंतु इसी थोड़े से समय में ही क़ुम नगर का वातावरण बदल गया और क़ुम में हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा की उपस्थिति इस नगर के इतिहास का महत्वपूर्ण एवं स्वर्णिम बिन्दु बन गई। दूर और निकट के लोग आपसे मिलने के लिए क़ुम नगर आये। आपने उस बीमारी की दशा में भी यथासंभव अपने ज्ञान से वास्तविकता प्रेमियों की प्यास बुझाई।


हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा ने ऐसे परिवार में आंखे खोली जो समस्त ज्ञानों एवं सदगुणों का प्रतीक था। आपने अपने पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के जीवनकाल में उनसे बहुत लाभ उठाया और उनकी शहादत के बाद अपने महान भाई हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान के अथाह सागर से मोती एकत्रित किए। आप अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से अगाध प्रेम करती थीं। आप अपना परिचय कराते हुए कहती थीं" मैं मासूमा रज़ा की बहन हूं" यह वाक्य अपने भाई हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम से उनकी आत्मीयता का सूचक है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी अपनी बहन हज़रत मासूमा से बहुत प्रेम करते थे। इस प्रकार से कि अपनी बहन से दूरी हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के लिए बहुत कठिन थी। इस आधार पर मदीना छोड़ देने और मर्व में रहने के बाद हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी बहन को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा और उन्हें मर्व आने के लिए कहा। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने एक विश्वसनीय व्यक्ति के माध्यम से मदीना पत्र भेजा और उस विश्वसनीय व्यक्ति से कहा कि जितनी जल्दी हो सके वह उनकी बहन को मर्व पहुंचा दे। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा ने भी भाई का पत्र मिलते ही स्वयं को यात्रा के लिए तैयार कर लिया और मर्व चल पड़ीं। यद्यपि भाग्य इस प्रकार था कि आप अपने भाई से न मिल सकीं।


ज्ञान, सदगुण, चरित्र और आत्मिक विशेषता व परिपूर्णता की दृष्टि से हज़रत मासूमा सलामुल्लाह का स्थान बहुत ऊंचा था। इन वास्तविकताओं को इस्लामी इतिहास की पुस्तकों में वर्णित आपकी उपाधियों एवं विशेषताओं के माध्यम से देखा जा सकता है। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के परिजनों के बीच मौजूद हदीस अर्थात हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम व उनके परिजनों के कथनों को बयान करने वालों में विशेष स्थान रखती थीं। आपने अपने पिता और दादा के हवाले से हदीसें बयान की हैं जिन्हें इस्लाम के बड़े-२ धर्मगुरू प्रमाण के रूप में पेश करते हैं। बाल्याकाल से ही ज्ञान एवं आध्यात्मिकता के चिन्ह आपके महान अस्तित्व में प्रतिबिंबित थे। इस्लामी इतिहास में आया है कि आप बचपने में ही धर्मशास्त्र आदि से जुड़े बहुत से प्रश्नों का उत्तर देती थीं। आपके दादा हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने आपके जन्म के समय कहा था" उनका मज़ार क़ुम में पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार से विशेष ठिकाना है" हज़रत मासूमा के मज़ार के दर्शन के समय जो विशेष दुआ पढ़ी जाती है उसमें आपके महान स्थान के कुछ पहलुओं की ओर संकेत किया गया है। इसी प्रकार महान धार्मिक व्यक्तियों के हवाले से आपकी कुछ उपाधियों का उल्लेख किया गया है जो हज़रत मासूमा के ज्ञान और आध्यात्मिक स्थान की सूचक हैं। सिद्दिक़ा और मोहद्दिसा भी आपकी उपाधियां है।


सिद्दिक़ा का अर्थ है बहुत अधिक सच बोलने वाली महिला और मोहद्दिसा का अर्थ है कथनों एवं घटनाओं को बयान करने वाली महिला। प्रमाणों के आधार पर हज़रत मासूमा करीमये अहलेबैत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। करीमा अर्थात दानी। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन और इस्लामी शिक्षाओं के अनुसरण को सफल जीवन की कुंजी मानती है। आप महान ईश्वर की याद और उसके प्रेम में अपना जीवन बिताती थीं। इस आधार पर धर्म का पूरा अनुसरण करने और क्षण भर के लिए भी सही मार्ग से विचलित न होने के कारण आप मानवीय परिपूर्णता के चरम शिखर पर पहुंच गईं। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने पवित्रता, ईश्वरीय भय और सदाचारिता के कारण ही आपको मासूमा अर्थात पापों से पवित्र महिला की संज्ञा दी है।


शताब्दियां बीत जाने के बावजूद ईरान के क़ुम नगर में आपका मज़ार हज़ारों श्रद्धालुओं का केन्द्र बना रहता है। देश- विदेश के हज़ारों लोग आपके दर्शन के लिए आते हैं। क़ुम में हज़रत मासूमा का पावन अस्तित्व इस नगर के विकास और उसमें बड़े-२ शिक्षा केन्द्र बनने का कारण बना है। इस्लामी ज्ञान व शिक्षाओं के प्यासे हज़ारों लोग विश्व के विभिन्न कोनों से क़ुम में आकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। क़ुम का धार्मिक शिक्षा केन्द्र मज़बूत एवं सुदृढ़ मोर्चे की भांति है जो इस्लामी सिद्धांतों एवं शिक्षाओं की रक्षा कर रहा है और समय बीतने के साथ महान धर्मगुरूओं एवं विद्वानों ने उसमें शिक्षा ग्रहण की। स्वर्गीय हज़रत इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह उन महान धर्मगुरूओं एवं विद्वानों में से एक हैं जो विश्व में महत्वपूर्ण परिवर्तनों के स्रोत थे। वर्तमान समय में पवित्र नगर क़ुम का धार्मिक शिक्षा केन्द्र प्रज्वलित दीपक की भांति है और वह पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों की सर्वोच्च शिक्षाओं के दृष्टिगत अशांत व दिग्भ्रमित विश्व में आज के मनुष्यों का मार्ग दर्शन कर रहा है।


हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं और सर्वसमर्थ व महान ईश्वर से इस बात की प्रार्थना करते हैं कि वह हम सबको पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम तथा उनके पवित्र परिजनों से अधिक से अधिक प्रेम करने एवं उनके द्वारा बताये गये मार्गों पर चलने क्षमता व भावना प्रदान करे। अपने इस कार्यक्रम का समापन हम हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक स्वर्ण कथन से कर रहे हैं। आप कहते हैः जो भी क़ुम में फ़ातेमा अर्थात हज़रत मासूमा का दर्शन करेगा वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने हमारा दर्शन किया हो।

सृष्टि, ईश्वर और धर्म

सृष्टि, ईश्वर और धर्म
प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में यह प्रश्न उठता रहा है कि सृष्टि का आरंभ कब हुआ, कैसे हुआ, क्या यह संभव है कि मनुष्य कभी यह समझ सके कि चाँद, सितारे, आकाशगंगाएं, पुच्छलतारे, पृथ्वी, पर्वत, उसकी ऊँची ऊँची चोटियाँ, जंगल, कीड़े-मकोड़े, पशु, पक्षी, मनुष्य, जीव-जन्तु यह सब कहाँ से आए और कैसे बने? हमने और आपने हो सकता है न सोचा हो किन्तु हज़ारों वर्षों से इस पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों ने सोचा और यहीं से धर्म का जन्म हुआ। हम ब्रहमाण्ड की रचना की जटिल बहस का उल्लेख नहीं करेंगे क्योंकि बिग-बैंग, जो इस सृष्टि की रचना का कारण बताया जाता है, उस पर भी वैज्ञानिकों ने बहुत से प्रश्न उठाए हैं। यहाँ बस केवल एक प्रश्न है जो हर काल में प्रायः हर मनुष्य के मन में उठता रहा है कि क्या कोई वस्तु बिना किसी बनाने वाले के बन सकती है?
एक अरब ग्रामीण से पूछा गया कि तुमने अपने ईश्वर को कैसे पहचाना? तो उसने उत्तर दिया कि ऊँट की मेंगनियाँ, ऊँट का प्रमाण हैं, पद-चिन्ह किसी पथिक का प्रमाण हैं, तो क्या इतना बड़ा ब्रह्माण्ड, यह आकाश, और कई परतों में पृथ्वी, किसी रचयिता का प्रमाण नहीं हो सकती!
यह अत्यधिक सादे शब्दों में ईश्वर के अस्तित्व के बारे में दिया जाने वाला वह प्रमाण है जिस पर बड़े-बड़े दार्शनिकों ने बहस की है और अपने विचार व्यक्त किए हैं, किन्तु अधिकांश लोगों ने ब्रह्माण्ड में मौजूद व्यवस्था को, ईश्वर के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण माना है।
अल्लामा हिल्ली एक बहुत प्रसिद्ध शीया बुद्धिजीवी थे। उनके काल में एक नास्तिक बहुत प्रसिद्ध हुआ। वह बड़े बड़े आस्तिकों को बहस में हरा देता था, उसने अल्लामा हिल्ली को भी चुनौती दी। बहस के लिए एक दिन निर्धारित हुआ और नगरवासी निर्धारित समय और निर्धारित स्थान पर इकट्ठा हो गए। वह नास्तिक भी समय पर पहुंच गया, किन्तु अल्लामा हिल्ली का कहीं पता नहीं था। काफ़ी समय बीत गया लोग बड़ी व्याकुलता से अल्लामा हिल्ली की प्रतीक्षा कर रहे थे कि अचानक अल्लामा हिल्ली आते दिखाई दिए। उस नास्तिक ने अल्लामा हिल्ली से विलंब का कारण पूछा तो उन्होंने विलंब के लिए क्षमा मांगने के पश्चात कहा कि वास्तव में मैं सही समय पर आ जाता, किन्तु हुआ यह कि मार्ग में जो नदी है उसका पुल टूटा हुआ था और मैं तैर कर नदी पार नहीं कर सकता था, इसलिए मैं परेशान होकर बैठा हुआ था कि अचानक मैंने देखा कि नदी के किनारे लगा पेड़ कट कर गिर गया और फिर उसमें से तख़्ते कटने लगे और फिर अचानक कहीं से कीलें आईं और उन्होंने तख़्तों को आपस में जोड़ दिया और फिर मैंने देखा तो एक नाव बनकर तैयार थी। मैं जल्दी से उसमें बैठ गया और नदी पार करके यहाँ आ गया। अल्लामा हिल्ली की यह बात सुनकर नास्तिक हंसने लगा और उसने वहाँ उपस्थित लोगों से कहाः "मैं किसी पागल से वाद-विवाद नहीं कर सकता, भला यह कैसे हो सकता है? कहीं नाव, ऐसे बनती है?" यह सुनकर अल्लामा हिल्ली ने कहाः "हे लोगो! तुम फ़ैसला करो। मैं पागल हूँ या यह, जो यह स्वीकार करने पर तैयार नहीं है कि एक नाव बिना किसी बनाने वाले के बन सकती है, किन्तु इसका कहना है कि यह पूरा संसार अपने ढेरों आश्चर्यों और इतनी सूक्ष्म व्यवस्था के साथ स्वयं ही अस्तित्व में आ गया है"। नास्तिक ने अपनी हार मान ली और उठकर चला गया।
मानव इतिहास के आरंभ से ही ईश्वर को मानने वाले सदैव अधिक रहे हैं अर्थात अधिकांश लोग यह मानते हैं कि इस संसार का कोई रचयिता है, अब वह कौन है? कैसा है? और उसने क्या कहा है? इस बारे में लोगों में मतभेद है किन्तु यही सच है कि यदि सही अर्थ में कोई धर्म है तो फिर उसका उद्देश्य भी मनुष्य को ईश्वर तक पहुँचाना होता है। वैसे यह बिन्दु भी स्पष्ट रहे कि ईश्वर और धर्म को मानने में ही भलाई हैं, क्योंकि आप दो ऐसे व्यक्तियों के बारे में सोचें कि जिनमें से एक धर्म और ईश्वर को मानता है और दूसरा नहीं मानता। उदाहरण स्वरूप दो व्यक्ति किसी ऐसे नगर की ओर जा रहे हैं जहाँ के बारे में दोनों को कुछ नहीं मालूम है। मार्ग में उन्हें एक अन्य व्यक्ति मिलता है जो उनसे कहता है कि जिस नगर में तुम दोनों जा रहे हो वहाँ खाने पीने को कुछ नहीं मिलेगा, इसलिए उचित होगा कि वहाँ के लिए थोड़ा भोजन और पानी रख लो तो ऐसी स्थिति में बुद्धि क्या कहती है? बुद्धि यही कहती है कि वहाँ के लिए कुछ खाना पानी रख लिया जाए, क्योंकि यदि वह सही कह रहा होगा तो मरने का ख़तरा टल जाएगा और यदि झूठ बोल रहा होगा तो कोई हानि नहीं होगी। अब इस कल्पना के दृष्टिगत एक व्यक्ति ने खाना पानी रखा लिया किन्तु दूसरे ने कहा कि इस व्यक्ति ने मज़ाक़ किया है, या यह कि झूठ बोल रहा था, या यह कि देखने में भरोसे का आदमी नहीं लग रहा था, यह सोच कर उसने कुछ साथ नहीं लिया। नगर आया तो उसने देखा कि खाना पानी सब कुछ था, जो व्यक्ति खाना पानी साथ लाया था उसने उसे फेंक दिया, बस सब कुछ ठीक हो गया, किन्तु दूसरी स्थिति में सोचें कि ये दोनो यात्री उस नगर में जब पहुंचे तो देखा कि वहाँ कुछ भी नहीं था तो अब जिसने अपने साथ खाना पानी रख लिया था, उसकी तो जान बच गई किन्तु जिसने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया था वह भूख और प्यास से मर गया। इसिलए बुद्धि हमें यह सिखाती है कि यदि ख़तरा या लाभ बहुत बड़ा हो तो उसकी सूचना देने वाला चाहे जैसा हो, बुद्धि कहती है कि उसके लिए कुछ प्रबंध अवश्य करना चाहिए। यदि दस ग्लास पानी हमारे सामने रखा है और कोई कहता है कि किसी एक में विष है तो बुद्धि कहती है कि किसी भी ग्लास का पानी न पिया जाए।
इस संसार में बहुत से लोग आए जो विदित रूप से अच्छे मनुष्य थे, लोगों की सहायता करते थे, अच्छे कार्य करते थे, लोकप्रिय थे, किन्तु वे कहा करते थे कि हम ईश्वरीय दूत हैं, इस संसार का एक रचयिता है, मरने के बाद एक अन्य लोक है जहाँ कर्मों का हिसाब किताब होगा और अच्छे कार्य करने वालों को स्वर्ग और बुरे कार्य करने वालों को नरक में भेजा जाएगा। तो फिर इस संदर्भ में हमारी बुद्धि क्या कहती है? यदि हम केवल बुद्धि की बात मानें तो होना यह चाहिए कि हम यह सोचें कि यदि इन लोगों ने सही कहा होगा तो हम स्वर्ग में जाएंगे और नरक में जाने से बच जाएंगे किन्तु यदि उन लोगों ने ग़लत कहा होगा तो मरने के बाद मिट्टी में मिल जाएंगे और परलोक नाम का कोई लोक नहीं होगा और हमें कोई हानि भी नहीं होगी। हमने अपने जीवन में जो अच्छे कर्म किए उसके कारण लोग हमें याद रखेंगे।
इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि इस सृष्टि का कोई रचयिता है, क्योंकि कोई भी वस्तु बिना बनाने वाले के नहीं बनती। बनाने वाले को अधिकांश लोग मानते हैं, उसे पहचानने के लिए विभिन्न लोगों को भिन्न-भिन्न मार्ग अपनाना पड़ता है। धर्मों में विविधता का कारण यही है। बुद्धि कहती है कि ईश्वर और परलोक की बात करने वालों पर विश्वास किया जाए, क्योंकि अविश्वास की स्थिति में यदि उनकी बातें सही हुईं तो बहुत बड़ी हानि होगी।