रविवार, 25 जुलाई 2010

एक चोर की कहानी

पुराने समय की बात है कि एक लड़का था जिसे यह नहीं ज्ञात था कि चोरी किसे कहते हैं। उसे तला हुआ अंडा या अंडायुक्त भोजन बहुत पसंद था। एक दिन जब उसे तला अंडा खाने की बहुत अधिक इच्छा हुई तो उसने अपनी मां से कहाः मां अंडा तल कर दीजिए। उसकी मां ने उत्तर दियाः बाद में तल दूंगी। इस समय अंडे समाप्त हो चुके हैं। मुर्ग़ी के पुनः अंडा देने तक प्रतीक्षा करनी होगी। वह बच्चा दो दिन प्रतीक्षा नहीं करना चाह रहा था इसलिए घर से बाहर निकल गया। उसके पड़ोसी ने काबुक में कई मुर्ग़ियां और मुर्ग़े पाल रखे थे। वह बच्चा पड़ोसी के काबुक की ओर गया और उसकी जाली से हाथ डालकर उसने दो तीन अंडे चुरा लिए और घर लौट आया। संयोगवश दोपहर का समय था और मौसम गर्म था उसका पड़ोसी घर के कमरे में आराम कर रहा था इसलिए पड़ोसी के घर का कोई सदस्य उस बच्चे को अंडा चोरी करते नहीं देख पाया। बच्चा प्रसन्न होकर अपने घर लौट गया। घर पहुंच कर उसने अंडे मां को दिए और उसे तलने के लिए अनुरोध किया। मां ने जब अंडे देखे तो पूछा कि ये अंडे कहां से लाए? बच्चे ने हंस कर उत्तर दिया कि पड़ोसी के काबुक से। मां ने बच्चे से यह कहने के बजाए कि यह बुरा कर्म है, यह चोरी है, अंडे ले जाकर वापस करो, कुछ क्षण सोच कर बच्चे से पूछाः किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं? बच्चे ने उत्तर दियाः नहीं। मां ने प्रेमभाव से कहाः ठीक है अंडे तल दे रही हूं किन्तु यह याद रहे कि तुमने पड़ोसी के काबुक से अंडे उठा कर भला कर्म नहीं किया है। बच्चा यह समझ गया कि पड़ोसियों को उसके कर्म के बारे में ज्ञात नहीं होना चाहिए। कुछ दिनों के पश्चात फिर अंडे समाप्त हो गए। इस बार यह बच्चा दबे पांव पड़ोसी के काबुक तक पहुंचा और आस पास उसने भलिभांति देख लिया कि कोई देख तो नहीं रहा है। उसने काबुक से कुछ अंडे उठाए और तेज़ी से घर भागा। जब उसने अंडे मां के हवाले किए तो मां ने कोई विरोध नहीं जताया। केवल यह पूछा कि कहीं पड़ोसी ने तो नहीं देखा? और फिर प्रेमभाव से कहाः बेटा यह अच्छा कर्म नहीं है। कुछ मिनट में अंडा तल कर आ गया। मां और बेटे दोनों ने खाया। धीरे धीरे बच्चा बड़ा हो रहा था। कभी कभी इधर उधर से कुछ न कुछ चोरी करता रहता। चोरी की गई वस्तुओं को या घर ले आता या फिर अपने मित्रों के बीच बांट कर मज़े उड़ाता। कुछ वर्षों के पश्चात वह छोटा बच्चा युवा हो गया और फिर एक दिन चोरी के अपराध में उसे पकड़ लिया गया। उसने इस बार एक घर से ऊंट की चोरी की थी और ऊंट के स्वामी और आस पास के लोगों ने उसे चोरी करते पकड़ लिया था। उसने सोचा भी नहीं था कि पकड़ा जाएगा। भागने का बहुत प्रयास किया किन्तु जितना भागने का प्रयास करता उतना ही पीटा जाता। अंततः उसे न्यायधीश के पास ले जाया गया। न्यायधीश ने चोरी सिद्ध हो जाने के पश्चात क़ानून के अनुसार चोर के हाथ काटने का आदेश दिया। जब जल्लाद हाथ काटने पहुंचा तो चोर ने गुहार लगाई कि मुझे मेरी मां से मिलने दिया जाए। न्यायधीश के आदेश पर चोर की मां को बुलाया गया। चोर ने कहाः यदि दंडित करना है तो मेरी मां को दंडित किया जाए क्योंकि मां ने उस समय मुझे नहीं रोका जब मैं छोटी छोटी चोरियां किया करता था। उसने मुझे अंडे चोर से एक माहिर चोर बनाया है। न्यायधीश चुप रहा। मां ने अपने अपराध को स्वीकार किया। न्यायधीश का मन उस बेचारे चोर के लिए पसीज गया और उसने उसे क्षमा कर दिया तथा चोर की मां को जेल में डालने का आदेश दिया।

1 टिप्पणी:

  1. भाई आप कौन हैं मुझे नहीं मालूम. यकीनन कोई नौजवान हैं. आप से भी यह इल्तेजा है की ,अंडा ना चुराएं वरना कहीं बाद मैं जाकर ऊंट चुराने की आदत ना पड जाए. कोई भी लेख़ आप मेरी किसी भी वेबसाइट से ले सकते हैं, लेकिन वेबसाइट का नाम ज़रूर दें.
    और कोशिश करें तो आप भी बेहतर लिख सकते हैं.

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