सोमवार, 30 अगस्त 2010

पवित्र रमज़ान




इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैः ईश्वरीय अतिथि बनना श्रेष्ठता व महानता का वह स्थान है जिस तक पहुंचने की सभी ईश्वरीय दूतों, मोमिनों व महापुरुषों ने कामना की। ईश्वर ने इस उच्च स्थान तक पहुंचने के लिए अपने बंदों को आमंत्रित किया है और उनसे दान दक्षिणा का आह्वान किया तथा बहुत से आत्मिक व आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति की ओर उन्हें बुलाया है। किन्तु यदि उनमें इस उच्च स्थान तक पहुंचने की तत्परता न हो तो वहां नहीं पहुंच सकते। दूषित मन, इन आध्यात्मिक वास्तविकताओं को नहीं समझ सकते। बल्कि मन पर बैठी बुराइयों की मैल जो ईश्वरीय सामिप्य के मार्ग में रुकावट बनी है, हटे ताकि ईश्वर की भव्य व प्रकाशमयी सभा में उपस्थित हुआ जा सके।
पवित्र रमज़ान के अतिथि बनने और इसकी अपार विभूतियों की प्राप्ति के लिए तीन तत्वों चेतना, रूचि और नियम पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ज्ञान व अंतर्दृष्टि पहला चरण हैं। यदि पवित्र रमज़ान के संबंध में मनुष्य का दृष्टिकोण आध्यात्मिक व वैज्ञानिक होगा तो उसकी आत्मा पर इसका बहुत प्रभाव पड़ेगा। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम हज़रत अली अलैहिस्सलाम से ज्ञान के महत्व के बारे में फ़रमाते हैः हे अली! ज्ञानी का सोना अनपढ़ की उपासना से बेहतर है। चेतना व जागरुकता से व्यक्ति में रूचि पैदा होती है तथा उसकी आध्यात्मिक भावनाएं प्रबल होती हैं। इसलिए क़ुरआन ने अपने निर्देषों व सुझावों में चिंतन मनन पर बहुत बल दिया है और उन लोगों की प्रशंसा की है जो हर समय चाहे खड़े हों या बैठे ईश्वर का गुणगान करते हैं और धरती और आकाश तथा इसके निर्रथक न होने के बारे में सोचते हैं। सोच विचार का महत्व इसलिए है क्योंकि इससे निश्चेत्ता का पर्दा हट जाता है जिसके परिणाम में मनुष्य नई वास्तविकताओं से अवगत होता है और उसे सूझबूझ व अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है। पवित्र क़ुरआन के महान व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई लिखते हैं कि मैं जब भी क़ुरआन का अध्ययन करता हूं हर बार नए अर्थ सामने आते हैं और क़ुरआन से मुझे नई नई बातें पता चलती हैं। व्यक्ति में उपासना में रूचि होना भव्य रमज़ान का अतिथि बनने के लिए दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु है। आध्यात्मिक आकर्षण और इस महीने में रोज़े तथा रमज़ान का अतिथि बनने के लिए मनुष्य में एक प्रकार की भावना, इस उपासना के महत्व को उसके निकट दुगुना कर देती है। ईमान वालों को रोज़ा रखना अच्छा लगता है क्योंकि ईश्वर ने इसे रखने पर बल दिया है। उनके लिए रोज़ा कठिनाइयों को सहन करने तथा त्याग व बलिदान का अभ्यास है। रमज़ान में मनुष्य में कामुक व अशिष्ट भावनाएं दब जाती हैं और वह मायामोह के चंगुल से छूट जाता है तथा ईश्वर के प्रकाशमयी दरबार में पापों के बोझ से छुटकारा पाकर हल्का फुल्का पहुंचता है।उपासना के प्रति अनुराग का कारण परिपूर्णतः के इच्छुक मनुष्य में अनन्य व पूज्य ईश्वर से प्रेम है और मनुष्य में यह दशा उस समय होती है जब वह पूज्य ईश्वर की महानता को समझ ले। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः सबसे अच्छा व्यक्ति वह है जिसमें उपासना के प्रति अनुराग हो। उपासना की ओर रूचि से उन्मुख हो और स्वंय को उसमें लीन कर ले। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम इस भावना के साथ एक स्थान पर मनमोहक रमज़ान की प्रशंसा करते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन करते हैं कि सलाम हो तुम पर हे सर्वाधिक मूल्यवान क्षण व सर्वश्रेष्ठ महीने! सलाम हो तुम पर हे मित्र जिसका अस्तित्व मूल्यवान और जिसकी अनुपस्थिति की याद सताए।सलाम हो हे साथी जिसका आगमन प्रसन्नतादायक है। कल कितनी तुम्हारी प्रतीक्षा की और कल पुनः तुम्हारे आगमन की उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा करूंगा। पवित्र रमज़ान की विभूतियों से पूर्णतः लाभान्वित होने के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु रोज़े के नियमों का पालन है। हर उपासना की औपचारिकता का पालन उसके सौन्दर्य व आकर्षण को बढ़ा देता है। उदाहरण स्वरूप पवित्र क़ुरआन की तिलावत, दीन दुखियों की सहायता, ज़बान को अपशब्द से रोकना तथा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार रोज़ा रखने के औपचारिक नियम हैं। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान के आगमन पर अपनी मनमोहक प्रार्थनाओं से इसका स्वागत करते और ईश्वर से कामना करते थे कि वह उन्हें सदकर्म का अवसर प्रदान करे। वे ईश्वर से प्रार्थना में कहते थेः हे प्रभु! हम पर कृपा कर कि पूरे रमज़ान के महीने तेरी उपासना करें। इसके समय को हम अपनी उपासनाओं से सुसज्जित करें। दिन में रोज़ा रखने और रात में नमाज़ें पढ़ने में हमारी सहायता कर। हमें अपने संबंधियों से संबंध बनाए रखने, सदकर्म करने और उसे जारी रखने में सफलता प्रदान कर। हमारी सहायता कर ताकि इस महीने में तेरा सामिप्य प्राप्त करें। मोमिन व सदाचारी वे लोग हैं जिनकी विशेषताओं का पवित्र क़ुरआन अपनी अमर शिक्षाओं में बड़े मनमोहक ढंग से वर्णन करता है और जलते हुए दीपक की भांति उन्हें जीवन बिताने की शैली बताता है। सही योजना बनाना जीवन का पहला मान्य सिद्धांत है। योजना व प्रबंधन मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि योजना को तीन चरणों पर आधारित होना चाहिए। पहला चरण संभावनाओं व सीमाओं की पहचान, दूसरा चरण लक्ष्य का निर्धारण और तीसरा चरण लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सर्वश्रेष्ठ शैली का चयन है। एक धर्म के रूप में इस्लाम जिसके पास मानवता के मार्गदर्शन के लिए संपूर्ण कार्यक्रम है, जीवन के मामलों में उपाय तथा योजना पर बल देता है जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम दिन रात के घंटो को सही ढंग से बांटने पर बल देते हुए कहते हैं कि दिन और रात के घंटों में तुम्हारे सभी काम करने की संभावना नहीं है तो इसे अपने काम और आराम के बीच बांट दो।इस आधार पर ईमान से सुसज्जित व्यक्ति अपने जीवन के समय के सदुपयोग के लिए काम व प्रयास को प्राथमिकता देता है। उसकी दृष्टि में काम एक सफल व स्वस्थ जीवन की बुनियाद है और यह मनुष्य के सम्मान की रक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व हो सकता है। उसने पवित्र क़ुरआन से यह पाठ लिया है कि मनुष्य के लिए केवल उतना ही है जितना उसने प्रयास किया है और शीघ्र ही उसका प्रयास उसके सामने पेश कर दिया जाएगा। एक अच्छे मुसलमान की छवि ऐसी हो कि वह प्रेरणा व उत्साह भरा हो। वह यह जानता है कि बेगारी और पेट भरना उसे शोभा नहीं देता बल्कि ये चीज़े उसे निराशा व विसंगति की ओर ले जाती हैं। वह प्रयास द्वारा अपने शरीर व मन में मौजूद ऊर्जा का सही ढंग से प्रयोग करता है। इतिहास में है कि एक मुसलमान ने काम करना छोड़ दिया और दिन रात उपासना करने लगा। जब इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम को यह बात पता चली तो उन्होंने बड़े खेद के साथ कहाः धिक्कार हो उस पर क्या वह यह नहीं जानता कि जो व्यक्ति काम नहीं करता उसकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की जाती। हर धर्म व मत में काम को महत्व दिया गया है। जो चीज़ एक मुसलमान के प्रयास को अधिक मूल्यवान बनाती है वह उसका सदकर्म है। क़ुरआन की दृष्टि में मुसलमान अपने सदकर्म द्वारा अपने आस पास के वातावरण पर प्रभाव डालता है और निरंतर प्रयास के साथ साथ वह इस बात के लिए भी प्रयासरत रहता है कि कहीं भौतिकवाद व उपभोक्तावाद से ग्रस्त न हो जाए। पवित्र क़ुरआन में सदाचारी व्यक्ति की एक और विशेषता यह बयान की गई है कि वह केवल अपने हितों के पीछे नहीं लगा रहता। काम करने के पीछे उसमें जीवन में आनंद, जनेसवा और अनन्य ईश्वर की प्रसन्नता की प्राप्ति की भावना होती है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति के प्रयास का उद्देश्य लोक परलोक की सफलता है। ईश्वर ऐसे व्यक्तियों को शुभसूचना देता है कि वे अपने सदकर्म का फल पाएंगे। जैसा कि इस संदर्भ में पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत क्रमांक दो सौ से दो सौ दो तक हम यह पढ़ते हैं कि कुछ लोग ऐसे है जो कहते हैं कि ईश्वर हमें इस संसार में दे दे और परलोक में उन्हें कुछ नहीं मिलेगा।और कुछ लोग ऐसे हैं जो ईश्वर से कहते हैं कि हमारे साथ इस संसार में और परलोक में भी भलाई कर मुझे नरक के दंड से सुरक्षित रख। यही वे लोग हैं जिन्हें उनके किए का फल मिलेगा और ईश्वर बहुत शीघ्र हिसाब करने वाला है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें