रविवार, 14 मार्च 2010

इंकेलाबी हुसैनी के असरात व बरकात

इंकेलाबी हुसैनी के असरात व बरकात

हक़ की फ़तह हुई और बातिल नाबूद हो गया और बेशक बातिल ज़वाल पज़ीर और ख़त्म हो जाने वाला है। यह सुन्नते इलाही है जो मख़कूलात के दरमियान जारी है और सुन्नते इलाही में तब्दीली का कोई इमकान ही नही है।

करबला दो जमाअते एक दूसरे के ख़िलाफ़ बरसरे पैकार हुयीं। एक हक़ की जमाअत थी दूसरी बातिल की। एक जमाअत इलाही अहदाफ़ को अमली जामा पहनाने आई थी और दूसरी जमाअत शैतानी मक़ासिद को पूरा करने। एक तरफ़ नौए इंसानी की निजात का ज़ामिन था तो दूसरी तरफ़ उसकी तबाही व बर्बादी का ज़रिया। कुछ लोग हक़ का परचम लहराने आये थे और कुछ लोग बातिल का अलम गाड़ने। एक गिरोह मज़लूमों और मुसतज़अफ़ीन के हुक़ूक़ का मुहाफ़िज था और दूसरा गिरोह हक़्क़े इंसानी की पायमाली का अलमबरदार।

यह जंग जिस्मों और ज़ाहिरी इंसानों के दरमियान नही थी बल्कि यह जंग अहदाफ़ और नज़रियात की जंग थी। यही वजह है कि यज़ीद मात खा गया और हुसैन कामयाब व कामरान हो गये, हुसैन शहीद हो गये और ज़ाहिरी तौर पर इस दुनिया से चले गये लेकिन सैयदुश शोहदा और आपके अंसार व आवान की मज़लूमाना शहादत ने पूरी इस्लामी मुआशरे में बेदारी की लहर पैदा कर दी। इस्लामी रगों में ताज़ा ख़ून गर्दिश करने लगा। मज़लूमों और सितमदीदा लोगों पर छाया हुआ सुकूत तोड़ दिया। ज़ालिमों और जाबिरों के ख़िलाफ़ आवाज़ें बुलंद हुयीं, लोगों के ज़हनो को बदल डाला और उनके सामने हक़ीक़ी और ख़ालिस इस्लाम का तसव्वुर पेश किया। यह तसादुम और यह जंग अगर चे ज़ाहिरी तौर पर एक ही दिन में तमाम हुआ लेकिन तूले तारीख़ में हमेशा उसके आसार व बरकात ज़ाहिर होते गये और जूँ जूँ तारीख़ आगे ब़ड़ती गई उसके नतायज सामने आते गये अहले हरम की असीरी से ही इसके सियासी असरात लोगों पर आशकार हो गये जब असीरों को शाम की तरफ़ ले जाया जा रहा था तो तकरीत पहुचने पर वहाँ के मसीही अपने कलीसाओं में जमा हुए और ग़म व मुसीबत के इज़हार के तौर पर ढोल ताशे बजाना शुरु कर दिया और यज़ीदी फ़ौज को उस जगह पर दाख़िल होने की इजाज़त नही दी। जब शहरे लीना पहुचे तो उस शहर के लोग जमा हो गये और इमाम हुसैन (अ) और आपके आवान व अंसार पर दुरुद व सलाम और उमवियों पर लानत भेजने लगे और यज़ीदी फ़ौज के वहाँ से बाहर निकाल दिया। जब यज़ीदी फ़ौज को पता चला कि शहरे जहीना में लोग फ़ौज से लड़ने के लिये जमा हो रहे हैं तो वह वहाँ से फ़रार कर गये। जब क़िल ए कुफ्र ज़ाब पहुचे तो वहाँ के लोगों ने भी शहर के अंदर आने से उन्हे रोक दिया और जब हिम्स पहुचे तो वहाँ के लोगों ने यज़ीद और यज़ीदी लश्कर के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त मुज़ाहिरे किये और यह नारे लगाये कि आ अकफुरो बाअदल ईमान व ज़लालन बअदल हुदा यानी क्या हम ईमान लाने के बाद कुफ़्र और हिदायत के बाद गुमराही इख़्तियार करें सिर्फ़ यही नही बल्कि उनसे मुतासादिम भी हो गये और बहुत सो को वासिल जहन्नम भी किया। (फरहंगे आशूरा पेज 241)

आशूरा के असरात

आशूरा के वाक़ेया ने इंक़ेलाब बरपा कर दिया, ग़फ़लत की नींद में पड़े हुए लापरवाह लोगों को बेदार कर दिया, मुर्दा ज़मीर इंसानों को ज़िन्दा कर दिया, मज़लूमियत और इँसानियत की फ़रियाद बुलंद कर दी और पूरी दुनिया ए इँसानियत को मुतअस्सिर कर दिया। उन बेशुमार आसार में से चंद एक मुलाहिज़ा हो:

1. बाज़ लोगों के अफ़कार पर बनी उमय्या को जो दीनी असर व रुसूख़ था वह ख़त्म हो गया क्योकि नवास ए रसूले ख़ुदा (स) की मज़लूमाना शहादत ने बनी उमय्या की हुकूमत को बे असास और जिहालत पर मबनी साबित कर दिया और उनके ज़ुल्म व सितम को इस्लामी मुआशरे में फ़ाश कर दिया जिस पर हज़ारों तरह के फ़रेब और धोके बाज़ी के पर्दे पड़े हुए थे।

2. मुस्लिम मुआशरे को शर्म सारी गुनाहगारी का अहसास दिलाया कि उन्होने हक़ व हक़ीकत की नुसरत नही की और न ही अपने वज़ीफ़े को अंजाम दिया। इस्लाम की हिफ़ाज़त हर मुसलमान पर वाजिब और इस्लामी तालीमात की नश्र व इशाअत और उनका निफ़ाज़ हर मुसलमान का वज़ीफ़ा है। इमाम हुसैन (अ) ने अपने वज़ीफ़े पर अमल करके हमेशा के लिये मुसलमानों को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाया।

3. ज़ुल्म व जौर के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने और उसका मुक़ाबला करने के लिये हर तरह के ख़ौफ़ व हिरास और रोब व दहशत को ख़त्म कर दिया जो उस वक़्त मुसलमानों और इस्लामी मुआशरे पर तारी था और मुसलमान मुजाहिदों के अँदर जुरअत, शहामत, दिलेरी और बहादुरी का जज़्बा पैदा कर दिया।

4. दुनिया के सामने यज़ीदियों और उमवी हुकूमत को ज़लील व रुसवा कर दिया और उनकी इस्लाम दुश्मनी को वाज़ेह कर दिया।

5. इंक़ेलाबी और इस्लाही जंगों की हौसला अफ़ज़ाई और उनकी पुश्त पनाही की ौर लोगों को आज़ादी और आज़ाद रहने का दर्स दिया।

6. एक नये इंसानी और अख़लाक़ी मकतब की बुनियाद डाली जो इंसानियत की पासदारी और अख़लाक़ी क़द्रों की पासबानी का ज़ामिन है।

7. मुतअद्दिद मक़ामात पर मुख़्तलिफ़ ज़ालिम हुकूमतों के ख़िलाफ़ नये नये इंक़ेलाब बरपा किये जहाँ लोगों ने हमास ए करबला से दर्स लेते हुए ज़ुल्म के आगे झुकने से इंकार कर दिया और अपने इस्लामी मज़हबी हुक़ूक़ को वापस लेने के लिये ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए।

8. तूले तारीख़ की तमाम आज़ादी और इंक़ेलाबी तहरीक़ें आशूरा की मरहूने मिन्नत हैं। जहाँ से उन्होने मुक़ावमत, मुजाहेदत, शहामत, शुजाअत, शहादत का तसव्वुर लेकर अपनी फ़तह की ज़मानत कर दी।

9. करबला और आशूरा, मुसलमान इँक़ेलाबी नस्लों के लिये, इश्क़ व ईमान और जिहाद व शहादत के एक युनिवर्सिटी बन गया।

आशूरा के बरकात व समरात

इस्लाम की फ़तह हुई और मिटने से महफ़ूज़ रहा क्योकि मंसबे इलाही पर ख़ुद ग़ासिब ख़ुद साख़्ता अमीरुल मोमिनीन यज़ीद ने अपने शैतानी करतूतों से इस्लाम के नाम पर इस्लाम को इतना मुशतबह कर दिया था कि हक़ीक़ी इस्लाम की शिनाख़्त मुश्किल हो गई थी क़ेमार बाज़ी, शराब ख़ोरी, नशे का इस्तेमाल, कुत्तों को साथ रखना, रक़्स और ऐश व नोश की महफ़िलों का इनऐक़ाद, ग़ैर इस्लामी शआयर की इशाअत, रिआया पर ज़ुल्म व जौर, हुक़ूक़े इंसानी की पायमाली, लोगों के नामूस की बेहुरमती वग़ैरह जैसे बाज़ ऐसे नमूने हैं कि जो यज़ीद ने हाकिमे इस्लामी के उनवान से अपनी रोज़मर्रा का मामूल बना रखा था और लोग उसी को इस्लाम समझते थे। इमाम हुसैन (अ) ने अपने क़याम के ज़रिये हक़ीक़ी इस्लाम को यज़ीदी इस्लाम से जुदा करके अलग पहचनवाया और दुनिया पर यह वाज़ेह कर दिया कि यज़ीद इस्लाम के लिबास में सबसे बड़ी इस्लाम दुश्मन ताक़त है। अहले बैते अतहार की शिनाख़्त इस उम्मत के मिसाली रहबर के उनवान से हुई। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद अगरचे मुसलमानो का तादाद कई गुना ज़्यादा बढ़ गई थी लेकिन वक़्त गुज़रने के साथ साथ ना मुनासिब क़यादत और गैर सालेह नाम नेहाद रहबरी की वजह से मुसलमान अस्ल इस्लाम से दूर होते गये, मफ़ाद परस्त हाकिमों ने अपने ज़ाती मनाफ़े के तहफ़्फ़ुज़ की ख़ातिर हलाले मुहम्मद को हराम और हरामे मुहम्मद को हलाल क़रार दे दिया और इस्लाम में बिदअतों का सिलसिला शुरु कर दिया। तारीख़ गवाह है कि सिर्फ़ 25 साल रेहलते पैग़म्बर (स) को गुज़रे थे कि जब हज़रत अली (अ) ने मस्जिदे नबवी में सन् 35 हिजरी में नमाज़ पढ़ाई तो लोग तअज्जुब से कहने लगे कि आज ऐसा लगा कि ख़ुद पैग़म्बर (स) के पीछे नमाज़ पढ़ी हो लेकिन 61 हिजरी में अब नमाज़ का तसव्वुर ही ख़त्म हो गया था। ऐसे में पैग़म्बरे अकरम (स) के हक़ीक़ी जानशीन ने मैदाने करबला में तीरोंस तलवारों और नैज़ों की बारिश में, तीरों के मुसल्ले पर नमाज़ क़ायम करके अपनी सालेह रहबरी और इस्लाम दोस्ती का सुबूत दे दिया और यह वाज़ेह कर दिया कि इस्लाम का हक़ीक़ी वारिस हर वक़्त और हर आन इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिये हर तरह की कुर्बानी दे सकता है। इमामत की मरकज़ीयत पर शियों को ऐतेक़ाद मुसतहकम हो गया। दुश्मनों के प्रोपगंडों और ग़लत तबलीग़ाती यलग़ार ने बाज़ शियों के ऐतेक़ादात पर ग़ैर मुसतक़ीम तौर पर गहरा असर डाल रखा था हत्ता कि बाज़ लोग इमाम (अ) को मशवरा दे रहे थे कि आप ऐसा करें और ऐसा न करें। बाज़ लोगों की नज़र में इमाम (अ) की अहमियत कम हो गई थी। इमाम हुसैन (अ) के मुसलेहाना क़याम ने साबित कर दिया कि क़ौम की रहबरी का अगर कोई मुसतहिक़ है तो वक़्त का इमाम है जो जानता है कि किस वक़्त कौन सा इक़दाम करे और किस तरह से इस्लाम असील को मिटने से बचाये। लोगों को आगाह रखने के लिये मिम्बर वअज़ जैसा इत्तेलाअ रसानी का एक अज़ीम और वसीअ निज़ाम क़ायम हुआ। मजालिसे अज़ादारी की सूरत में हर जगह और हर आन एक ऐसी मीडिया सेल वुजूद में आ गई जिसने हमेशा दुश्मनो की तरफ़ से होने वाली मुख़्तलिफ़ साज़िशों, प्रोपगंडों और सक़ाफ़ती यलग़ार से आगाह रखा और साथ साथ हक़ व सदाक़त का पैग़ाम भी लोगों तक पहुचता रहा। आशूरा, ज़ुल्म, ज़ालिम, बातिल और यज़ीदीयत के ख़िलाफ़ इंक़ेलाब को आग़ाज़ था। इमाम हुसैन (अ) ने यज़ीद से साफ़ साफ़ कह दिया था ''मिसली या उबायओ मिसला यज़ीद'' मुझ जैसा तुझ जैसे की बैअत नही कर सकता। यानी जब भी यज़ीदीयत सर उठायेगी तो हुसैनीयत उसके मुक़ाबले में डट जायेगी। जब भी यज़ीदीयत इस्लाम को चैलेंज करेगी तो हुसैनीयत इस्लाम को सर बुलंद रखेगी और यज़ीदीयत को नीस्त व नाबूद करेगी। यही वजह है कि आशूरा के बाद मुख़्तलिफ़ ज़ालिम हुक्मरानों के ख़िलाफ़ मुतअद्दिद इंक़ेलाब रू नुमा हुए और बातिल के ख़िलाफ़ रू नुमा होने वाले कामयाब तरीन इंक़ेलाब में ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब है जिसने 2500 साला आमरियत को जड़ से उखाड़ फेंका। यह गिरया व अज़ादारी, रोना और रुलाना, मजालिस, ज़िक्रे मुसीबत, मरसिया, नौहा वग़ैरह की शक्ल में पेश की जाती है।

इंक़ेलाब के अज़ीम रहबर इमाम ख़ुमैनी ने साफ़ साफ़ फ़रमाया कि हमारे पास जो कुछ है सब इसी मुहर्रम व सफ़र की वजह से है लिहाज़ा यह इस्लामी इंक़ेलाब, आशूरा का एक बेहतरीन और वाज़ेह तरीन समरा है जो वक़्त के यज़ीदो के लिये एक बहुत बड़ा चैलेंज बन गया है जिसको मिटाने के लिये इस वक़्त पूरी दुनिया मुत्तहिद हो गई है। लेकिन हमारा अक़ीदा है कि यह इंक़ेलाब हज़रत इमाम मेहदी (अ) के इँक़ेलाब का मुक़द्दमा है और यह इंक़ेलाब, इंक़ेलाबे इमाम मेहदी (अ) से मुत्तसिल हो कर रहेगा। इंशा अल्लाह तआला।

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