ज़ुबैर और ज़ुल्फ़ा
कितना अच्छा होता अगर तुम शादी कर लेते और अपना घर बसा लेते इस तरह तन्हाई की ज़िन्दगी से निजातमिल जाती और तुम्हारी शादी की ख़्वाहिश भी पूरी हो जाती और वही औरत दुनिया और आख़िरत के कामों मेंतुम्हारी मददगार साबित होती।
या रसूल अल्लाह (स.) न मेरे पास माल है और न जमाल, न मेरे पास हसब है और न नसब। कौन मुझे लड़कीदेगा? कौन सी लड़की मेरे जैसे फ़कीर, कोताह कद, सियाहफ़ाम और बदशक्ल इन्सान की तरफ़ माइल होगा।
ऐ ज़ुबेर, ख़ुदावन्दे आलम ने इन्सान के ज़रिए लोगों की कद्र व कीमत बदल दी है। ज़मान ए जाहिलियत में बहुतसे लोग मोहतरम थे, इस्लाम ने उन्हें पस्त शुमार किया और बहुत से लोग उसी ज़माने जाहिलियत में पस्त वज़लील थे जिन्हे इस्लाम ने बुलन्द मर्तबे पर पहुंचाया। ख़ुदा वन्दे आलम ने इन्सान के ज़रिए जाहिलियत के ग़ुरूरव तकब्बुर, को ख़त्म कर दिया हे और नसब व ख़ानदान पर फ़ख्र करने से रोका है, अब इस वक़्त सब इन्सानसफ़ेद व सियाह और अजमी व ग़ैर अजमी सब के सब एक ही सफ़ में ख़ड़े हैं अगर किसी को फज़ीलत व बरतरी हैतो सिर्फ़ तक़वा और इताअते ख़ुदा की वजह से है। मैं मुसलमानों में उस शख़्स को तुम से ज़्यादा बुलन्द मर्तबेवाला मानूंगा जो तुम से ज़्यादा तक़वा और अमल में बेहतर होगा। इस वक़्त मैं जो तुम्हें हुक्म दे रहा हूं उस परअमल करो।
ये वोह गुफ़्तुगू है जो रसूले ख़ुदा (स.) और ज़ुबेर में (असहाबे सुफ़्फ़ा के दरमियान हुई थी) ज़ुबैर, कामा, का रहनेवाला था, वो अगरचे फ़कीर और सियाह फ़ाम और कोताह कद था, मगर हक तलब और साहीबे होश व इरादा था।इस्लाम की शोहरत सुनने के बाद वो फ़ौरन मदीने आया ताकि करीब से हकीकत हाल को समझ सके।
ज़्यादा अरसा न गुज़रा कि वो दाइराए इस्लाम में दाख़िल हो गया और मुसलमानों के साथ रहने लगा। लेकिन चुंकिन माल था और न ही घर व जान पहचान। रसूले ख़ुदा (स.) के हुक्म के मुताबिक मस्जिद में वक़्ती तौर परज़िन्दगी गुजार रहा था। दुसरे लोग जो मुसलमान हो गए थे और मदीने में रह रहे थे, उनमें भी बहुत से अफ़राद ऐसेथे जो ज़ुबैर की तरह मोहताज व तंगदस्त थे और पैग़म्बरे इस्लाम के हुक्म से मदीने में ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे।यहाँ तक कि रसूले इस्लाम (स.) पर, वही, नाज़िल हुई कि मस्जिद रहने की जगह नहीं है इन लोगों को मस्जिद केबाहर सुकूनत की जगह दो। हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) ने मस्जिद के बाहर एक साएबान बनवाया और उन लोगों कोउस साएबान में मुन्तकिल कर दिया। उस जगह को सुफ़्फ़ा का नाम दिया गया। उसके रहने वाले चूंकि फ़कीर वमुसाफ़िर थे इसलिये उन्हें असहाबे सुफ़्फ़ा कहने लगे। रसूले ख़ुदा (स.) और उनके असहाब उनकी ज़िन्दगी केवसाइल फ़राहम करते थे।
एक दिन आँ हज़रत (स) उस गिरोह को देखने लिए तशरीफ़ लाए कि उसी दौरान हज़रत की निगाह ज़ुबैर पर पड़ीसोचने लगे कि ज़ुबैर को इस हालत से निकालना चाहिए और उसकी ज़िन्दगी के लिए माकूल इन्तिज़ाम करनाचाहिए। लेकिन जिस बात का ख़्याल ज़ुबैर के दिल में कभी नहीं आया था खुसूसन अपनी मौजूदा हालत केपेशेनज़र वो ये था कि कभी घर वाला और साहिबे माल व अयाल हो। इसी वजह से जब हज़रत ने शादी करने कीतजवीज़ रखी ताअज्जुब के साथ जवाब दिया कि आया मुम्किन है कि कोई मेरे साथ शादी करने को तैयार होजाए। लेकिन आँ हज़रत ने फ़ौरन उसकी ग़लत फहमी दूर कर दी और इस्लाम की वजह से समाज में जोतब्दीलियां रूनुमा हुई थी, उनसे आगाह कर दिया।
आँ हज़रत (स) ने जब ज़ुबैर को इस ग़लत फहमी से निकाला और उसको घरेलू ज़िन्दगी के लिए मुतमइन औरउम्मीदवार किया और हुक्म दिया कि वो फ़ौरन ज़ियाद इब्ने लुबैदे अन्सारी के घर जाकर उसकी बेटी ज़ुल्फ़ा सेअपने लिए शादी की ख़्वाहिश करे।
ज़ियाद इब्ने लुबैद अन्सारी अहले मदीना के सरवत मन्द और मोहतरम लोगों में से था। उसके कबीले वाले उसकाबहुत ऐहतेराम किया करते थे। जिस वक़्त ज़ुबैर ज़ियाद के घर वारिद हुआ उसके ख़ानदान के काफ़ी लोग जमा थे।
जब ज़ुबैर उस के घर पहुंचा तो जाकर बैठ गया और काफ़ी देर तक ख़ामोश रहा उसके बाद सर उठाया और ज़ियादकी तरफ़ देख कर कहा मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की तरफ से तेरे लिए एक पैगाम लाया हूँ। पोशिदा तौर पर कहूँ याअलल ऐलान ?
ज़ियाद बोला, पैगम्बरे इस्लाम (स.) के पैग़ाम मेरे लिए बाइसे फख्र है अल्ल ऐलान कहो, ज़ुबैर ने कहा मुझेपैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने तेरे पास भेजा है ताकि में तेरी बेटी ज़ुल्फ़ा से अपनी शादी
का पेग़ाम दूँ। ज़ियाद ने कहा, क्या ख़ुद पैगम्बर ने तुझे इस काम के लिए भेजा है ?
ज़ुबैर ने कहा, में अपनी तरफ़ से कुछ भी नहीं कह रहा हूं। सब मुझे जानते हैं कि मैं कभी झूट नहीं बोलता।,
ताज्जुब है ये हमारे यहाँ का दस्तूर नहीं है कि अपनी लड़की को अपने हमशान कबीले के अलावा किसी और को दें।तुम जाओ मैं खुद पैग़म्बर से बात करूंगा। ज़ुबैर अपनी जगह से उठा और घर से बाहर चला गया, लेकिन जिसवक़्त वो जा रहा था, अपने आप से कह रहा था, ख़ुदा की कसम जो कुछ कुरआन ने तालीम दी है और जो कुछनबुव्वते मोहम्मदी (स.) ने तालीम दी है वो ज़ियाद के क़ौल से बिल्कुल अलग है।
ज़ुबैर ने जो बातें धीरे धीरे कहीं थी, तमाम अफ़राद जो करीब बैठे थे सबने सुन लीं। हुस्न व जमाल में चूर लुबैद कीलड़की, ज़ुलफ़ा, ने भी ज़ुबैर की बातें सुनीं जब ज़ुल्फ़ा ने तमाम बातें सुन लीं तो अपने बाप के पास आई ताकिहालात से आगाह हो सके। उसने अपने बाप से कहा, बाबा जान, अभी-अभी जो शख़्स घर से बाहर कुछ कहता हुआगया है उसका क्या मतलब है?
ज़ियाद ने कहा, बेटी ये शख़्स तुम्हारे लिए शादी का पैग़ाम लाया था और ये दावा कर रहा था कि उसे पैग़म्बरेइस्लाम (स.) ने भेजा है, ज़ुल्फ़ा ने कहा, कहीं ऐसा न हो कि वाक़ई पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उसे भेजा हो उसकोवापस करना पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के हुक्म की नाफ़रमानी होगी। ज़ियाद बोला, अब तुम्हारे ख़्याल में, मैं क्याकरूं ?
मेरे ख़्याल में उसे पैग़म्बर इस्लाम (स.) की ख़िदमत में पहुँचने से पहले पहले वापस बुला लेना चाहिए। आप खुदपैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बारगाह में तशरीफ़ ले जाएं और उनसे मालूम करें की मामला क्या है।
ज़ियाद ज़ुबैर को ऐहतेराम के साथ वापस लाया और बिला ताख़ीर पैग़म्बर की ख़िदमत में रवाना हुआ, और जैसे हीहज़रत को देखा अर्ज़ किया। या रसूल अल्लाह (स.) ज़ुबैर मेरे घर आया था और आप की तरफ़ से पैग़ाम लाया था।मैं आपसे अर्ज़ करना चाहता हूँ कि हमारे यहाँ के रस्म व रिवाज ये हैं कि अपनी लड़कियों की शादी अपने ख़ानदानमें शान व शौकत वालों के साथ करतें हैं जो आपके अनसार व मददगार हैं ।
रसूले खुदा (स.) ने फ़रमाया, ऐ ज़ियाद, ज़ुबैर मोमिन है। जिस शान व शौकत का तुम गुमान कर रहे हो वो ख़त्महो चुकी है। मर्द मोमिन का कुफ़ू मोमिना औरत है।
ज़ियाद सीधे ज़ुल्फ़ा के पास गया और सारा माजरा बयान किया। ज़ुल्फ़ा ने कहा, मेरे ख़्याल से रसूले ख़ुदा कीतजवीज़ को रद्द नहीं करना चाहिए। ये सारा मसअला मुझ से मुतअल्लिक है। ज़ुबैर जो कुछ भी है मुझे उससे राज़ीहोना चाहिए। चुँकी रसूले खुदा (स.) इस से राज़ी हैं इसलिए में भी राज़ी हूं।
शनिवार, 13 मार्च 2010
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