रविवार, 14 मार्च 2010

धर्म और स्वस्थ मानसिकता

धर्म और स्वस्थ मानसिकता

मनुष्य की मानसिक स्थिति पर पड़ने वाले धार्मिक विश्वासों के प्रभाव पर यद्यपि कम ही ध्यान दिया गया है, परन्तु इस संदर्भ में किए गए मूल्यांकनों ने दर्शा दिया है कि इन विश्वासों का जीवन के सभी पहलुओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है और यह लोगों को मादक पदार्थों तथा शराब से दूर रखते हैं। दृढ़ धार्मिक विश्वास कारण बनते हैं कि लोगों पर मानसिक दबाव कम पड़े। हतोत्साह का शिकार कम हों, अपराधों की ओर उन्मुख न हों और उनके परिवारों में तलाक़ की बात बहुत कम हो। ईश्वरीय धर्मों में विश्वास रखने वाले आत्महत्या की ओर भी कम ही जाते हैं।


पश्चिमीमनोवैज्ञानिकोंने अपने एक अध्ययन द्वारा पता लगाया है कि जो लोग चर्च नहीं जाते वो उन लोगों की तुलना में आत्म हत्या करने की संभावना चार गुना अधिक रखते हैं जो निरन्तर चर्च जाते रहते हैं। क्योंकि काठिनाइयों से मुक़ाबले के लिए धार्मिक व्यक्ति आत्म हत्या के मार्ग को स्वीकार नहीं करते। जिन लोगों को धर्म में अधिक विश्वास नहीं होता वही अधिकतर आत्महत्या करते हैं।
अमरीकीअनुसंधानकर्ता स्टॉंक ने धार्मिक लोगों द्वारा आत्महत्या कम किए जाने के विभिन्न कारण बताए हैं जिनमें आत्म सम्मान की ठोस भावना और नैतिक दाइत्व को समझना प्रयुख हैं। उनका कहना है कि धर्म में विश्वास आत्म सम्मान में वृद्धि करता हैं और इस भावना की अनुमुति उन लोगों को नहीं हो पाती जिन्हें धर्म में विश्वास नहीं होता है।


मादकपदार्थोंकेप्रयोग के संबंध में किए गए अनुसंधानों में वही परिणाम सामने आए जो आत्महत्या के संबंध में सामने आए थे। उदाहरण स्वरुप २० प्रयोग करके अनुसंधान कर्ता इस परिणाम पर पहुंचे कि जिन लोगों को धर्म में विश्वास नहीं होता उनके लिए यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि आगे चलकर वो मादक पदार्थों के आदी बन सकते हैं। कुछ अनुसंधान कर्ताओं ने तो पूरे विश्वास के साथ यह कहा है कि धार्मिक लोग मादक पदार्थों का प्रयोग नहीं करते हैं। १२ अनुसंधानों के परिणाम दर्शाते हैं कि धार्मिक विश्वास, मादक पदार्थों के प्रयोग में कमी का कारण बनते हैं। इस अनुसंधान के अन्य परिणामों में से यह है कि धार्मिक भावनाएं किसी व्यक्ति में जितनी मज़बूत होंगी, मादक पदार्थों के प्रयोग की संभावना उतनी ही कम होगी। यह विषय इस बात की पुष्टि करता है कि गहरे धार्मिक विश्वास लोगों को मादक पदार्थों की लत में पड़ने से रोक देते हैं।


अपराधीएवं धार्मिक भावना के बीच संबंध का मूल्यांकन दर्शाता है कि धार्मिक विश्वास रखने वाले लोग कम ही अपराध करते हैं। दूसरे शबदों में धार्मिक समोरोहों में भाग लेना और धार्मिक नियमों का पालन, अपराधों को रोकने वाला हो सकता है। एक प्रश्न यह भी उठता है कि सन्तुष्ट वैवाहिक जीवन और धार्मिक विश्वासों के बीच कोई संबंध है या यह कि क्या धार्मिक होना तलाक़ को रोकने का कारण बनता है?
क्याधार्मिकलोगों में तलाक़ की दर कम होने का अर्थ उनके वैवाहिक जीवन की सफलता के अर्थ में है या यह कि वे एक दूसरे के साथ दाम्पत्य जीवन से आनन्द नहीं उठा रहे हैं और विवशता से एक दूसरे के साथ जीवन बिता रहे हैं?


क्याधार्मिक होना कारण बनता है कि लोग अपने वैवाहिक जीवन से अधिक आनन्द उठाएं?
अनुसंधानकर्ताओं नेअपनेअध्यनों से दर्शा दिया कि दीर्घ काल तक दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने का सबसे महत्वपूर्ण कारण उनके वैवाहिक जीवन की सफलता है। कुछ अन्य विद्वान अपने अनुसंधानों के बाद इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि विवाह के स्थाइत्व का सबसे महत्वपूर्ण कारक धर्म पर विश्वास है।
कुछविद्वानों ने वैवाहिक जीवन से सन्तोष और पति - पत्नि के धार्मिक होने के बीच संबंधों का मूल्यांकन किया है। यह अनुसंधान दर्शाते हैं कि धार्मिक होने तथा वैवाहिक जीवन से सन्तुष्ट होने के बीच सकारात्मक संबंध है। दूसरी ओर हम यह जानते हैं कि परिवारिक स्थाइत्व और तलाक़ की संभावनाओं में कमी, स्वयं परिवारों के मानसीक स्वास्थ्य का अत्यन्त महत्वपूर्ण कारक है। जो पति - पत्नी तलाक़ लेते हैं उनके मानसिक रोगों में गस्त होने की संभावना उन लोगों से कई गुना अधिक होती है जो कभी तलाक़ लेने की नहीं सोचते।


६५वर्ष से उपर की ऐसी ३० महिलाओं का विद्वानों ने अध्ययन किया जिनकी कूल्हे की हड्डी दूटने के कारण उनका आपरेशन किया गया था। इन सभी महिलाओं का धार्मिक विश्वास बहुत मज़बूत था और पता लगा कि इनमें हृत्दय रोग के कोई चिन्ह नहीं थे, बोध की दृष्टि से उन्हें कोई समस्या नहीं थी और यह सभी कूल्हे की हड्डी टूटने के कारण अस्पताल में भर्ती थीं।
उक्तसभीअनुसंधानों के आधार पर हम कह सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में धर्म का विशेष स्थान है। इसी प्रकार धर्म संभावित आत्म हत्याओं में कमी का कारण बनता है, मादक पदार्थों के प्रयोग की संभावना कम करता है, युवाओं में अपराध की भावना में कमी लाता है, परिवारों में तलाक़ की संभावना समाप्त करता है, हतोत्साह की भावना उत्पन्न नहीं होने देता और अन्तत: परिवार में दम्पत्ति के सन्तोष और रुचि को बढ़ाता है। यधपि इस प्रकार के अनुसंधान हमारे देश में नहीं किए गए हैं परन्तु शायद हम कह सकते हैं कि ऐसा किए जाने पर हमारे सामने भी इन्हीं के समान परिणाम आएं गे।

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