आज शाम से ही घर मैं सब खुश है ! कल इस्लाम के रहबर , सभी मुसलमाओं के खलीफा, पैगम्बर इ इस्लाम हजरत मुहम्मद (स०) के उत्तराधिकारी, हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम का जन्मदिन है। आप आदरणीय पैगम्बर इ इस्लाम हजरत मुहम्मद (स0) के दामाद भी थे .आप का जन्म रजब मास की 13वी तारीख को हिजरत से 23वर्ष पूर्व मक्का शहर के विश्व विख्यात व अति पवित्र स्थान काबे मे हुआ था।कल ख़ुशी का दिन है, हम सब अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम, की बताई बातों का ज़िक्र करेंगे, और उनका अमन का पैगाम, सदाचार और इंसानियत का पैगाम अपने बच्चों तक पहुंचाएंगे जिस से वोह एक बेहतरीन इंसान बन सकें. कल घर मैं खीर और सेवएं की बहार आएगी, पडोसी और रिश्तेदार आएंगे, मुहब्बत और भाईचारा बढेगा.
हज़रतअली पैगम्बर की देखरेख मे प्रशिक्षित हुए। हज़रतअली ने अपने एक प्रवचन में कहा कि मैं पैगम्बर के पीछे पीछे इस तरह चलता था जैसे ऊँटनी का बच्चा अपनी माँ के पीछे चलता है। पैगम्बर (स) प्रत्येक दिन मुझे एक सद्व्यवहार सिखाते व उसका अनुसरन करने को कहते थे। जब आदरणीय मुहम्मद (स0) ने अपने पैगमबर होने की घोषणा की तो हज़रतअली वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने आपके पैगम्बर होने को स्वीकार किया तथा आप पर ईमान लाए। हज़रत पैगम्बर ने अपने स्वर्गवास से तीन मास पूर्व हज से लौटते समय ग़दीरे ख़ुम नामक स्थान पर अल्लाह के आदेश से सन् 10 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की 18वी तिथि को हज़रतअली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। अपने पाँच वर्षीय शासन काल मे उन्होने अधिकारिक क्षेत्र मे सुधार करके जनता को समान अधिकार प्रदान किये। शासन की ओर से दी जाने वाली धनराशि के वितरण मे व्याप्त भेद भाव को समाप्त करके समानता को स्थापित किया। उन्होंने कहा कि निर्बल व्यक्ति मेरे समीप हज़रत हैं मैं उनको उनके अधिकार दिलाऊँगा।व अत्याचारी व्यक्ति मेरे सम्मुख नीच है. हज़रत अली (अ) ने सिखाया : मुसलमान तुम्हारा धर्म भाई है और दुसरे इंसान तुम्हारे इंसानियत के रिश्ते से भाई हैं। दोनों का तुमपर अधिकार है. सभी इंसान एक दुसरे के मददगार हैं. हज़रतअली (अ की यह कविता मुझे हमेशा से पसंद रही है...
सीने में तेरे तेरा हर इक दर्द छुपा है
और ढूंढ कि हर मर्ज़ की तुझ में ही दवा है
तू समझा कि तू कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं है
तू दिल में ज़रा झांक कि आलम तो यहां है
तू देख कि तुझ में भी किताब ऐसी नेहां है
हर लफ़्ज़ से जिस के तेरा ह्हर राज़ अयां है
ढूंढे है ज़माने में जो तुझ में ही नहीं है
बेदारी जो तुझ में है,तुझे इल्म कहां है
शेफा कज्गओंवी का यह कलाम हज़रात अली (अ) के किरदार को पेश करता है॥
""मुफ़लिस ओ नादार को गंदुम की दे कर बोरियां
ख़ुद किया फ़ाक़ा अली ,ऐसी केफालत को सलाम ""
"ख़तीब ए वक़्त भी, मुश्किल कुशा भी रहनुमा भी हैं
हर इक हाजत रवा करने मदद को आप आए हैं "
प्रोफेसर Nicholson ने अपनी पुस्तक " History of अरब" मैं टिप्पणी की "अली एक बहादुर योद्धा, एक बुद्धिमान परामर्शदाता, एक सच्चे दोस्त और उदार शक्सियत का मालिक था । यह वोह अली (अ) है जिसकी ओलादों ने कर्बला मैं शहादत दे के इस्लाम को दहशतगर्दों से बचाया और बताया इस्लाम नाम है सब्र का, हक के लिए जान को कुर्बान करने का, किसी की जान लेना, किसी को बे इज्ज़त करने का नाम इस्लाम नहीं है। इमाम हुसैन (अ०) जो की हज़रात अली(अ) के पुत्र थे , उनको उनके ७२ साथिओं ( दोस्त और रिश्तेदार) के साथ , यजीद ने ,जो की एक ज़ालिम बादशाह था, ज़ुल्म के साथ कर्बला मैं शहीद कर दिया। इमाम हुसैन ने यह भी इजाज़त मांगी याज़ेद की फ़ौज से की "मुझको हिंदुस्तान जाने दो जहां इंसान बसते हैं." लेकिन इजाज़त ना मिली और भूखा प्यासा शहीद कर दिया जालिमों ने.
इंसानियत का पैग़ाम देने वाले इमाम अली (अ.स) की विलादत सभी को मुबारक हो.
हज़रत अली (अ) ने हमको सीखाया: जब कोई कुछ कहे तो यह ना देखो कौन (किस धर्म का) कह रहा है, यह देखो की क्या कह रहा है.
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