सोमवार, 30 अगस्त 2010

रमज़ान-२


सुबह का समय भक्ति व उपासना के लिए कितना अच्छा क्षण है। उस समय ईश्वर से प्रार्थना की उत्सुकता मोमिन की आंखों से नींद उड़ा देती है और उन्हें प्रियतम से भेंट के लिए कहती है। रोज़ा रखने वाले कितने सौभाग्यशाली हैं कि इस महीने उनकी ज़बान ईश्वर के गुणगान में लीन है और वंचितों, अनाथों व असहाय लोगों की सहायता के प्रयास में लगे हैं। निःसंदेह स्वर्ग ऐसे अच्छे लोगों का स्थान है।



जब आंखे रात के समय गहरी नींद में होती हैं उस समय सदाचारी व्यक्तियों के मन में ईश्वर की प्रार्थना की भावना जागृत होती है। वह नर्म बिस्तर से उठते हैं। वज़ू करते हैं और सजदे में जाकर ईश्वर से पापों की क्षमा मांगते हैं। भोर के अद्वितीय क्षणों में उनके मन ईश्वर की याद में लीन हो जाते हैं और उनका पूरा अस्तित्व ईश्वर का गुणगान करता है।
पवित्र क़ुरआन के आलेइमरान सूरे की आयत क्रमांक सोलह और सत्रह में भोर समय पापों के प्रायश्चित को ईश्वर से भय रखने वालों की एक विशेषता कहा गया है। इस आयत में ईश्वर कहता हैः वह लोग जो यह कहते हैं कि प्रभुवर! हम ईमान लाए। हमारे पापों को क्षमा कर दे और हमें नरक की आग से बचा ले। ये सब धैर्य रखने वाले, सच्चे, आज्ञाकारी, और दान दक्षिणा करने वाले और भोर के समय पापों का प्रायश्चित करने वाले हैं।
इस्लाम में रात के समय ईश्वर से प्रार्थना को बहुत महत्वपूर्ण कहा गया है और इसका मन व आत्मा पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। पवित्र रमज़ान के महीने में यह विषय दूसरा रंग रूप ले लेता है। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने पवित्र रमज़ान में भोर के समय के लिए विशेष प्रार्थनाएं बताई हैं जिसके गहरे अर्थ, ईश्वर और बंदे के बीच बहुत अच्छा संपर्क स्थापित करते हैं। इन विशेष प्रार्थनाओं में दुआए अबु हमज़ा सुमाली और दुआए सहर उल्लेखनीय हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पश्चात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता का मार्गदर्शन करने वाले जिन्हें इमाम कहा जाता है, रातों को जाग कर उपासना करने वालों के लिए सर्वश्रेष्ठ नमूना हैं। हमारे युग में भी ऐसे आदर्श लोग मौजूद रहे हैं। ऐसे महापुरुष जिन्होंने ईश्वर से भय और उसकी प्रार्थना द्वारा अंतर्दृष्टि के अथाह सागर में डुबकी लगाई। ऐसे ही लोगों में ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की भी गणना होती है। उनके संबंधियों में से एक संबंधी का कहना है कि मैं पवित्र रमज़ान की एक रात में जब वह आधी बीत चुकी थी, किसी काम से इमाम ख़ुमैनी के कमरे के सामने से गुज़रा। इमाम ख़ुमैनी उस समय ईश्वर से प्रार्थना करते हुए रो रहे थे। इमाम के रोने की आवाज़ का वास्तव में मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा। इमाम उस अर्ध रात्रि को ईश्वर की बहुत ही सुंदर व स्नेहमय ढंग से प्रार्थना कर रहे थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैः रात में जाग कर प्रार्थना करना मोमिन की प्रतिष्ठा है और लोगों से किसी चीज़ की आशा न रखने में उसका सम्मान है।

शरीर व आत्मा की तरुणाई तथा आयु में वृद्धि भोर के समय उठने के लाभ हैं। फ़्रांस के शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह निष्कर्ष पेश किया है कि भोर के समय उठने से मस्तिष्क की धमनियों में रक्त के जमने और ब्रेन हेमरिज जैसे मस्तिष्क से जुड़े रोग नहीं होते। इन शोधकर्ताओं के अनुसार भोर समय उठने वाले व्यक्ति की हृदय गति धीमी होती है और वह स्ट्रेस व तनाव से कम ग्रस्त होता है। भोर समय उठने से मन व स्नायु तंत्र शांत रहता है और मनुष्य की आजीविका बढ़ती है। ईरानी मनोवैज्ञानिक डाक्टर गुलज़ार कहते हैं कि भोर समय उठने के मन की ताज़गी के अतिरिक्त और भी बहुत से लाभ हैं। चिकित्सकों का मानना है कि कोर्टिसोल नामक हार्मोन, अवसाद विरोधी और रक्त की शर्करा को बढ़ाता है तथा दिन के समय इसका गाढ़ापन एक जैसा नहीं रहता। अवसाद विरोधी इस हारमोन का गाढ़ापन भोर के समय सबसे अधिक होता है।इसलिए भोर के समय व्यक्ति अधिक शांति तथा अपने भीतर अधिक ताज़गी का आभास करता है। इस शारीरिक व मानसिक ताज़गी का सार्थक प्रभाव पड़ता है जिसमें लोगों से अच्छे स्वभाव से मिलना भी शामिल है। भोर समय उठने वाला व्यक्ति अध्ययन सहित दिन चर्या के अन्य कामों के लिए आवश्यक ऊर्जा का अपने भीतर आभास करता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि भोर समय उठने के लिए अभ्यास की आवश्यकता है और यदि उस समय ईश्वर से छोटी सी प्रार्थना भी हो जाए तो व्यक्ति प्रफुल्लित हो जाता है। मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्श पर पहुंचे हैं कि भोर के समय प्रार्थना करने वाले अधिकांशतः सकारात्मक विचार रखने वाले व्यक्ति होते हैं। निःसंदेह पवित्र रमज़ान का महीना ईश्वर की प्रार्थना और भोर समय उठने के अभ्यास के लिए उचित अवसर है।


सदाचारी व्यक्ति की एक विशेषता सच बोलना है। ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए माएदा की आयत क्रमांक 119 में कहता हैः आज वह दिन है जब सच बोलने वालों को उनका सच लाभ पहुंचाएगा । उनके लिए स्वर्ग के ऐसे बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वह उसमें सदैव रहेंगे। ईश्वर उनसे प्रसन्न होगा और वह ईश्वर से प्रसन्न होंगे और यही बड़ी सफलता है।

सच बोलने वाले लोग प्रायः निर्भीक, निष्कपट और सुदृढ़ व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं और इसके विपरीत झूठ बोलने वाले, डरपोक, दिखावा करने वाले और कमज़ोर व्यक्तित्व के लोग होते हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि झूठ बोलने वाले सदैव भीतर से दुखी रहते हैं। चूंकि वे नहीं चाहते कि उनके झूठ की पोल खुले इसलिए उन्हें इस बात की निरंतर चिंता रहती है कि कहीं दूसरे उनकी विरोधाभासी बातों को समझ न जाएं। जबकि सच बोलने वाला व्यक्ति बात करते समय सदैव मानसिक शांति का आभास करता है क्योंकि उसे अपनी बातों के परिणामों की चिंता नहीं रहती। नए वैज्ञानिक शोध के अनुसार झूठ बोलते समय मनुष्य का मस्तिष्क अधिक ऊर्जा लेता है जबकि सच बोलने वाले के साथ ऐसा नहीं है। इन शोधों के अनुसार सच बोलने से मस्तिष्क की शक्ति, ऊर्जा और क्षमता बढ़ती है।

सच बोलने के लाभों में एक यह भी है कि सच बोलने वाले पर लोगों का विश्वास बढ़ जाता है क्योंकि उसकी बातों व व्यवहार में विरोधाभास नहीं दिखाई देता। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और सामूहिक रूप से जीवन बिताता है इसलिए दूसरों का उस पर भरोसा करना महत्व रखता है। क्योंकि सामुहिक कार्य जभी संभव होगा जब लोगों को एक दूसरे पर भरोसा हो और वे सच बोलने वाले हों।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक साथी उनके पास गए और कहा कि कभी कभी न चाहते हुए पाप हो जाता है। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा कि वे उसे पाप न करने का समाधान बताएं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः झूठ मत बोलो! उस व्यक्ति ने कहा बस इतना। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा हां बस इतना ही। वह व्यक्ति चला गया। उसके बाद उस व्यक्ति के सामने पाप करने के कई अवसर आए किन्तु उस समय उसने स्वंय से कहा कि यदि पाप करता हूं और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने पूछ लिया तो क्या उत्तर दूंगा? जबकि पैग़म्बरे इस्लाम को वचन दिया है कि सच बोलूंगा और झूठ से बचूंगा। इस प्रकार आत्म निरीक्षण और सच बोलने पर आग्रह से उस व्यक्ति का चरित्र अच्छा हो गया। ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए अहज़ाब में लोगों से सच बोलने के लिए आग्रह करता है कि इसका उनके कर्म में सुधार और पापों की क्षमा में बहुत अधिक प्रभाव है। स्पष्ट है कि हमें अपने कर्म में सुधार के लिए अपनी ज़बान को निर्रथक व झूठी बातों से रोकना होगा और ऐसी बातें करनी होंगी जो सच्ची हों।

निःसंदेह सच बोलने की मनुष्य में शिष्टाचारिक गुण पैदा करने में चमत्कारिक भूमिका है। अरस्तू कहता हैः सच बोलना उस ख़ज़ाने की भांति है जो जितना प्रकट होता है उसके चाहने वाले उतने ही अधिक होते हैं और झूठ छिपी हुई आग की भांति है कि जब प्रकट होती है तो उससे तबाही अधिक होती है।

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